दिल्ली और पंजाब में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी (आप) ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को वोट देने का फैसला किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने साफ किया कि वह द्रौपदी मुर्मू का सम्मान तो करती है, लेकिन साथ सिन्हा का ही देगी। पार्टी संजोयक अरविंद केजरीवाल के घर पर हुई पीएससी की बैठक में यह फैसला लिया गया। यह इसलिए भी अहम है क्योंकि यूपीए के साथी जेएमएम और शिवसेना ने मुर्मू के समर्थन का ऐलान कर दिया है तो दो राज्यों में सरकार चलाने वाली एकमात्र गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी पार्टी को कुछ राहत जरूर मिलेगी।
राष्ट्रपति चुनाव से ठीक एक दिन पहले सस्पेंस से पर्दा हटाकर आप ने उन राजनीतिक जानकारों को हैरान भी किया, जो गुजरात चुनाव के मद्देनजर उम्मीद जता रहे थे कि पार्टी मुर्मू का साथ दे सकती है। गुजरात विधानसभा चुनाव की तैयारी में जोरशोर से जुटी आप ने आदिवासी मुर्मू को दरकिनार करके पूर्व नौकरशाह और अटल सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा को वोट देने का फैसला किया तो इसके राजनीतिक मायने भी तलाशे जा रहे हैं। दिल्ली और पंजाब को मिलाकर आप के पास 10 राज्यसभा सांसद हैं। तो दिल्ली, पंजाब और गोवा में कुल 156 विधायक हैं।
भाजपा के साथ दिखना मंजूर नहीं
राजनीतिक जानकारों की मानें तो राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत को समर्थन देने का फैसला भी काफी सोच समझ कर लिया गया है। पंजाब में जीत हासिल करने के बाद एक दशक पुरानी पार्टी देशभर में विस्तार का प्लान बना रही है। केजरीवाल की पार्टी इस समय भले ही कई राज्यों में कांग्रेस का स्थान लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन दूरगामी लक्ष्य खुद को भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करना है। पार्टी खुद को भाजपा की सबसे प्रबल विरोधी के रूप में दिखाना चाहती है। माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत पार्टी किसी कीमत पर खुद को भाजपा के ‘साथ’ नहीं दिखाना चाहती है। पार्टी के रणनीतिकारों को इस बात की आशंका थी कि राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए का साथ देने पर कांग्रेस जैसे दल उसे ‘भाजपा की बी टीम’ के रूप में पेश करेंगी।