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श्मशान घाटों में लोगों के अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिल रही

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बेंगलुरु में शवों से पटे पड़े श्मशान घाट, शवदाह के लिए नहीं मिल रही जगह।

भारत में कोरोना का सितम बदस्तूर जारी है। अब तक लाखों घर कोरोना की चपेट में आकर उजड़ चुके हैं। हर रोज हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं। आलम यह है कि श्मशान घाटों में लोगों के अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं मिल रही है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भी कुछ ऐसे ही हालात देखने को मिले हैं। बेंगलुरु में 7 श्मशान घाटों को कोरोना वायरस के मरीजों का अंतिम संस्कार करने के लिए चिह्नित किया गया था, लेकिन राजधानी में लाशों का इतना ढेर लग चुका है कि अब श्मशान घाट इन लाशों का बोझ उठाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं। जगह न मिलने की वजह से लाशों को शहर के बाहर ग्रेनाइट की खान पर जलाया जा रहा है।

crematorium
इसके अलावा तावारेकेरे में भी कोरोना के मरीजों के शवों का दाहसंस्कार करने के लिए एक खाली मैदान चिह्नित किया गया है। बेंगलुरु शहरी जिला आयुक्त मंजूनाथ ने इस बात की जानकारी दी। उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में गेदनाहल्ली में एक ग्रेनाइट की खान को श्मशान घाट मे तब्दील किया गया है ताकि मृत लोगों का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार हो सके। ग्रेनाइट की खान पर अंतिम संस्कार के लिए 15 लोहे के बेड तैयार किये गए हैं।

गेदनाहल्ली और तवरकेरे दोनों बेंगलुरु के पश्चिम में लगभग 6 किमी दूर स्थित हैं। गेदनाहल्ली में जहां श्मशान घाट बनाया गया है वह शहर से लगभग 25 किमी की दूरी पर है, जहां प्रतिदिन लगभग 30-40 चिताएं जलाई जा रही हैं। वहीं शहर के सात कोविड श्मशान घाट चौबीसों घंटे लगातार अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जिनमें से एक को रख-रखाव के लिए शनिवार को बंद कर दिया गया। शनिवार को कर्नाटक में 482 लोगों की कोरोना वायरस से मौत हो गई, जिनमें से 285 लोग अकेले बेंगलुरु के थे। शुक्रवार को बेंगलुरु में 346 लोगों की मौत हो गई, जोकि पिछले 15 महीनों में शहर में कोरोना से मरने वालों की सर्वाधिक संख्या थी। वहीं, रविवार को बेंगलुरु में 281, जबकि कर्नाटक में 490 लोगों की मौत हुई।

सरकार ने गेदनाहल्ली में बनाए गए श्मशान घाट के रखरखाव और वहां अंतिम संस्कार करने के लिए कुछ कर्मचारियों को भी तैनात किया है, जिन्हें 12-15 घंटे तक लगातार काम करना पड़ रहा है, क्योंकि शव लगातार आ रहे हैं। यहां पिछले 10 दिनों से काम कर रहे एक कर्मचारी ने कहा कि मैं ऐसे कठिन समय में लोगों की मदद करना चाहता था, इसलिए मैंने यहां काम करने का फैसला किया। सरकार की और से हमें पीपीई किट मिली है, लेकिन हमें भोजन पानी की सुविधा नहीं मिल रही है

एक अन्य अस्थाई कार्यकर्ता ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से यहां लगातार लाशें आ रही हैं। हमको सुबह 7 बजे से देर रात तक काम करना पड़ रहा है। प्रतिदिन 25-30 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। यहां भी एंबुलेंसों की लंबी लाइन लग जाती है।

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