प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सोमवार को होने वाला लुम्बिनी दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक होने जा रहा है। पीएम के तथागत की परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर उतरकर वहां से उनके जन्मस्थली लुम्बिनी जाने को विदेशी मामलों के जानकार भारत की विदेश नीति का एक हिस्सा मान रहे हैं। इसके पीछे पूरी दुनिया के बौद्ध अनुयायियों को साफ संदेश देने की मंशा बताई जा रही है कि लुम्बिनी जाने के लिए कुशीनगर सबसे मुफीद है। यही वजह है अब भारत में विकसित बौद्ध सर्किट से लुम्बिनी के जुड़ने की पूरी उम्मीद दिख रही है। सदियों पुराने भारत-नेपाल के बीच रोटी-बेटी के संबंधों को भी इस यात्रा से मजबूती मिलेगी।
नेपाल का चीन के प्रति मोहभंग हो रहा है, लेकिन यह साफ कहा जा रहा है कि लुम्बिनी में धर्म की आड़ लेकर चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाने की पुरजोर कोशिशें की हैं। अब जब पीएम मोदी खुद लुम्बिनी पहुंच रहे हैं तो बहुत कुछ साफ हो जाएगा। विदेशी मामलों के जानकार व सैन्य विज्ञान के विशेषज्ञ मेजर डॉ. परशुराम गुप्त कहते हैं कि पीएम का कुशीनगर के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरकर वहां से लुम्बिनी जाना पूरी दुनिया को एक खास संदेश है। कहते हैं कि इधर भारत की विदेश नीति तीखी और केवल राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। इस यात्रा से पीएम पूरी दुनिया के बौद्ध अनुयायियों को यह संदेश देने जा रहे हैं कि लुम्बिनी जाने के लिए कुशीनगर सबसे बेहतर रास्ता है। यह भी कहते हैं कि चीन ने तिब्बत से लुम्बिनी तक रेल लाइन बिछाने का सब्जबाग दिखाया था, लेकिन कर नहीं सका। भारत के सहयोग से नेपाल के तराई में रेल परियोजना पर काम शुरू हुआ है। इसे लेकर भारत के प्रति विश्वसनीयता तेजी से बढ़ी है।
बौद्ध सर्किट में बूम
भारत में इधर बौद्ध सर्किट विकसित हो गया है। लेकिन लुम्बिनी बौद्ध अनुयायियों के लिए खासा महत्व रखता है। इसकी वजह से पीएम की लुम्बिनी यात्रा से इस सर्किट में बूम आने की उम्मीदों से जोड़कर देखा जा रहा है। बौद्ध सर्किट के विस्तार से दोनों देशों के सीमाई इलाकों का तेजी से विकास होगा। पर्यटन बढ़ेगा तो पर्यटन से जुड़े लोगों की बहार आएगी। वहीं, कुशीनगर के इंटरनेशनल एयरपोर्ट से लुम्बिनी तक प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर से जाने को लेकर यह भी उम्मीद बढ़ी है कि भविष्य में कुशीनगर से लुम्बिनी तक हेलीकॉप्टर सेवा शुरू हो जाए।
भारत की ओर होगा बौद्ध देशों का रुझान
बौद्ध देशों के लोग अपने जीवन काल में एक बार बौद्ध सर्किट का भ्रमण करना चाहते हैं। इनके अहम पड़ाव में तथागत की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर के साथ जन्मस्थली लुम्बिनी शामिल है। बौद्ध गया, सारनाथ भी महत्वपूर्ण कड़ी हैं। अब जबकि भारत में बौद्ध सर्किट विकसित हो गया, तो लुम्बिनी के विकसित होने और बौद्ध सर्किट का विस्तार होने की उम्मीद लगाई जा रही है। इससे भारत की ओर बौद्ध देशों का रुझान होगा और सुरक्षा परिषद सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति मजबूत होगी।