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मुर्मू के सामने क्यों नहीं टिक पाए सिन्हा… क्या विपक्ष से उम्मीदवार चुनने में हुई गलती?

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राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने 64.3% वोटों के साथ आसानी से जीत हासिल कर ली। इन नतीजों से एक बार फिर यह साफ हो गया कि देश में विपक्षी राजनीतिक दलों के बीच मजबूत एकता का कितना अभाव है। विपक्ष के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा भी बरकरार है। हालांकि कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति उम्मीदवार आम-सहमति से नहीं चुना गया। 

विपक्ष की ओर से इस तरह की बयानबाजी तो खूब हुई कि 2024 में नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया जाएगा, जिसकी शुरुआत राष्ट्रपति चुनाव से होगी। हालांकि, हकीकत तो यह थी कि विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर शुरू से जिन तीन उम्मीदवारों का चयन किया, उन्होंने आगे आने से इनकार कर दिया।

सिन्हा के नाम पर कई विपक्षी दल नहीं आए साथ 

विपक्ष के कई नेताओं ने स्वीकार किया कि भाजपा के खिलाफ एक पूर्व भाजपा नेता को खड़ा करने का फैसला बहुत अच्छा नहीं था। जबकि भाजपा ने मुर्मू की आदिवासी पृष्ठभूमि की बात करते हुए साहसिक विकल्प का चुनाव किया। सिन्हा के नाम पर बीजू जनता दल और वाईएसआरसीपी जैसे दल विपक्ष के साथ नहीं आए। उनके लिए एनडीए उम्मीदवार मुर्मू का समर्थन करना आसान हो गया।

विपक्ष ने भी सुझाया आदिवासी उम्मीदवार का नाम

टीएमसी नेता ने बताया कि उनकी पार्टी ने ओडिशा (मुर्मू के राज्य) की तुलसी मुंडा के नाम पर चर्चा की थी, जो कि आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ऐसा हो सकता था कि मुंडा के नाम पर ज्यादा विपक्षी दल साथ आते, लेकिन बात नहीं बन सकी। 

नामांकन से दो दिन पहले उम्मीदवार का ऐलान

मुर्मू के खिलाफ उम्मीदवार के चयन पर बात नहीं बनने से विपक्ष में बौखलाहट बढ़ती गई। कांग्रेस को भी एहसास हो गया कि अब वह किसी नाम को लेकर लीड करने की स्थिति में नहीं है। मसलन, नामांकन की समय सीमा से दो दिन पहले तक विपक्ष के पास राष्ट्रपति उम्मीदवार नहीं था। ऐसी स्थिति में अलग-अलग नेताओं को पहल करनी पड़ी। एक सीनियर वाम नेता ने कहा कि जब किसी ने यशवंत सिन्हा का नाम लिया तो हमने कहा कि वह टीएमसी सदस्य हैं। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और हम उनके साथ चल दिए।

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