देश में भाजपा से मुकाबले की नहीं क्षमता, फिर भी क्यों कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहीं ममता?

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महाराष्ट्र में शरद पवार से मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया कि देश में कोई यूपीए यानी कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन नहीं है। ममता की इस टिप्पणी का कांग्रेस में जबरदस्त रिएक्शन दिखा और वे नेता भी उनके खिलाफ बोलने लगे, जो बीते कई महीनों से पार्टी में सुधार की बात कर रहे हैं। हालांकि इसे लेकर शरद पवार ने कोई टिप्पणी नहीं की। यहां तक कि महाराष्ट्र सरकार अपनी पार्टी के सभी मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को बुलाकर ममता बनर्जी से मुलाकात की। ममता बनर्जी से दोस्ती गाढ़ी होने का संकेत देकर शरद पवार ने भी एक तरह से कांग्रेस पर दबाव बनाने का काम किया है।

देश भर की राजनीति पर नजर डालें तो ममता बनर्जी भले ही गोवा से लेकर हरियाणा तक कांग्रेस एवं अन्य दलों के नेताओं को तोड़कर अपना कुनबा मजबूत कर रही हैं, लेकिन वह भी जानती हैं कि टीएमसी बंगाल के बाहर भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब वह भाजपा को टक्कर नहीं दे सकती हैं तो फिर कांग्रेस के बिना विपक्षी गठबंधन की बात कर देश की सबसे पुरानी पार्टी की नाराजगी क्यों मोल ले रही हैं? राजनीतिक जानकारों के मुताबिक ममता बनर्जी की रणनीति यह है कि कांग्रेस पर इसके जरिए दबाव बनाए रखा जाए। 

फिलहाल कांग्रेस तमिलनाडु, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सत्ता में है। ऐसे में एनसीपी, डीएमके और झामुमो जैसे दल उसकी नाराजगी मोल लेकर सरकार को खतरे में नहीं डालना चाहेंगे। लेकिन ममता बनर्जी की रणनीति यह है कि कांग्रेस की लीडरशिप पर सवाल उठाकर उसे दबाव में लाया जाए। वह चाहती हैं कि यूपीए में ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि कांग्रेस सीनियर पार्टनर रहने की बजाय समान हिस्सेदार की भूमिका में आ जाए। इसके बाद वह 2024 के आम चुनाव के बाद भाजपा को बहुमत न मिलने की स्थिति में कांग्रेस से बड़ी डील कर सकेंगी। 

कमजोर होकर भी क्यों जरूरी बनी हुई है कांग्रेस

कांग्रेस की मुश्किल यह है कि राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी के मुकाबले में वह पिछड़ती दिखती है। राहुल गांधी के मुकाबले पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी कहीं ज्यादा है और तुलनात्मक तौर पर लोग मोदी को काबिल प्रशासक के तौर पर देखते हैं। यही वजह है कि गैर-कांग्रेसी विपक्षी दल कांग्रेस की लीडरशिप पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस कमजोर होने के बाद भी इसलिए विपक्षी दलों की जरूरत है क्योंकि भाजपा के बाद वही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है। भले ही जगन मोहन, शरद पवार, ममता बनर्जी जैसे नेता एक दौर में कांग्रेस से ही निकले हैं, लेकिन इन लोगों ने अपने राज्यों में ही मजबूती दिखाई है। राज्य से बाहर इनका कोई जनाधार नहीं है। ऐसे में पूर्व में कांग्रेस से ही निकले दलों और समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों को एक सूत्र में बांधने का काम कांग्रेस ही करती है।

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