महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह को कानून के तहत ‘व्हिसलब्लोअर’ नहीं माना जा सकता, क्योंकि उन्होंने अपने तबादले के बाद ही पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का फैसला किया। राज्य सरकार ने साथ ही, परमबीर सिंह की याचिका को खारिज करने का भी न्यायालय से अनुरोध किया।
जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने गत 22 नवंबर को सिंह को बड़ी राहत देते हुए महाराष्ट्र पुलिस को उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में उन्हें गिरफ्तार न करने का निर्देश दिया था और आश्चर्य जताते हुए कहा था कि जब पुलिस अधिकारियों और जबरन वसूली करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए उनका (सिंह का) पीछा किया जा रहा है, तो एक आम आदमी का क्या होगा।’
महाराष्ट्र सरकार ने पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने और राज्य सरकार द्वारा किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने संबंधी परमबीर सिंह की याचिका खारिज करने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत में एक जवाबी हलफनामा दायर किया और कहा कि पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामलों में चल रही जांच में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
राज्य गृह विभाग के संयुक्त सचिव वेंकटेश माधव की ओर से दायर हलनफनामे में कहा गया है, ”याचिकाकर्ता (सिंह) को व्हिसलब्लोअर नहीं माना जा सकता है। मैं कहना चाहता हूं कि मौजूदा एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) में किये गये दावे के विपरीत याचिकाकर्ता व्हिसलब्लोअर संरक्षरण कानून, 2014 के प्रावधानों के तहत व्हिसलब्लोअर नहीं है।” राज्य सरकार ने 83-पन्नों के जवाबी हलफनामे में कहा है कि कदाचार के आरोप में हाल ही में मुंबई पुलिस से निलंबित किए गए परमबीर सिंह याचिका के माध्यम से परोक्ष रूप से अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामले में जांच पर रोक लगाने की कोशिश कर रहे हैं और सामग्री और प्रासंगिक तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहे हैं
हलफनामा में कहा गया है इस अदालत ने अनगिनत निर्णयों में देखा है कि जांच की दिशा तय करने का जिम्मा जांच एजेंसी के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए और अदालत को केवल विरले मामलों में ही जांच में हस्तक्षेप करना चाहिए। राज्य सरकार ने कहा, ”याचिकाकर्ता ने बंबई उच्च न्यायालय द्वारा पारित 16 सितंबर, 2021 के फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर की है, लेकिन वास्तव में वह अपने खिलाफ दर्ज विभिन्न आपराधिक शिकायतों में आगे की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं और अदालत द्वारा इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”
महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि निलंबित पुलिस अधिकारी के खिलाफ विभिन्न मामलों में जांच लंबित है और यह की भी जा रही है। हलफनामे में कहा गया है कि सिंह को विभागीय जांच को चुनौती देने के लिए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण से संपर्क करना चाहिए और उनकी याचिका को बंबई उच्च न्यायालय ने विचारणीय नहीं होने और वैकल्पिक उपायों की उपलब्धता के आधार पर सही ही खारिज किया था। हलफनामे के अनुसार, सिंह की याचिका निष्फल हो गई है, क्योंकि सीबीआई पहले ही पुलिस अधिकारी संजय पांडे को 18 सितंबर को समन जारी कर चुकी है और यह स्पष्ट है कि सीबीआई परमबीर सिंह और संजय पांडे के बीच हुई बातचीत की जांच कर रही है। शीर्ष अदालत ने सिंह की याचिका पर सुनवाई के लिए छह दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है।