इस साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद अहम है। दो साल बाद देश में लोकसभा चुनाव होने हैं। 2019 के आम चुनावों के बाद इसे देश का सबसे बड़ा चुनाव कहा जा सकता है जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत के साथ वापस आए थे। पांच राज्यों – उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के चुनाव, जो देश की आबादी का पांचवां हिस्सा हैं, इस वक्त भी कोरोना महामारी से उबर रहा है। किसान आंदोलन और कोरोना महामारी के बाद ये देश में होने वाला सबसे बड़ा चुनाव है। इस चुनाव में आगामी लोकसभा चुनाव की जमीन तो तैयार होगी ही साथ ही ‘मोदी ब्रांड’ की अग्निपरीक्षा भी है। इन चुनावी राज्यों में से चार में भाजपा की सरकार है। इसलिए ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा के लिए ये चुनाव नाक का सवाल है।
10 मार्च को पांचों राज्यों में चुनावी परिणामों के बाद पता चल जाएगा कि क्या भाजपा तीन कृषि कानूनों को निरस्त करके पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में किसानों की नाराजगी को बेअसर करने में कामयाब हुई है या नहीं। हालांकि केंद्र सरकार चुनाव में अपने खिलाफ माहौल को देखते हुए तीनों कृषि कानून पिछले साल ही रद्द कर चुकी है। इसके अलावा प्रचार-प्रसार में भाजपा नेता जोर देकर कहते रहे हैं कि भाजपा सरकार आगामी वर्षों में किसानों की आय दोगुनी करने में सक्षम है। आंकड़े बताते हैं कि भारत किसान की आय दोगुनी करने के करीब नहीं है। वास्तव में, मुख्य रूप से उर्वरकों और श्रम की बढ़ती लागत के कारण कृषि क्षेत्र से आय लगभग स्थिर बनी हुई है, जो सरकार के खिलाफ किसानों के बीच स्पष्ट गुस्से का एक कारण है।
उत्तर प्रदेश और पंजाब को छोड़कर उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है, जहां भाजपा सत्ता में है। 2017 के चुनाव में कांग्रेस को मणिपुर और गोवा में भाजपा से ज्यादा सीटें मिलीं लेकिन वह सरकार नहीं बना पाई थी। उत्तर प्रदेश में इस बार सत्ताधारी भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच कड़ी लड़ाई मानी जा रही है। तो पंजाब में, मुकाबला त्रिकोणीय लगता है क्योंकि कांग्रेस को आम आदमी पार्टी, निवर्तमान पंजाब विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल शिरोमणि अकाली दल से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिसे कांग्रेस ने 2017 में भारी अंतर से हराया था। लेकिन उस वक्त कांग्रेस का चेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह थे, लेकिन कैप्टन को किनारे करके कांग्रेस ने अपने लिए खाई तैयार की है या कोई फर्क नहीं पड़ा, ये चुनाव परिणामों के बाद ही पता लगेगा।
वेस्ट यूपी से पंजाब तक में किसान आंदोलन का असर
कृषि विरोधी कानून पांच राज्यों में होने वाली 620 विधानसभा सीटों में से 240 को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। इसका पहला चुनावी प्रभाव जनवरी की शुरुआत में देखने को मिला जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी एक चुनावी रैली में शामिल हुए बिना पंजाब से लौट आए। हालांकि केंद्र ने इसे बड़े पैमाने पर सुरक्षा उल्लंघन का नाम दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने दावा किया था कि चुनावी रैली में भीड़ नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री वापस लौट आए। पंजाब भर में किसान संघों के कार्यकर्ता अभी भी भाजपा नेताओं को निशाना बना रहे हैं और भाजपा को पंजाबियत के खिलाफ एक पार्टी के रूप में पेश कर रहे हैं।
महंगाई की मार से जनता त्रस्त
कोरोना महामारी के कारण सुस्त पड़े बाजार और बेकाबू महंगाई ने जनता को त्रस्त किया। भाजपा सरकार जानती है कि जनता महंगाई को लेकर उनके खिलाफ हो सकती है। इसलिए पिछले दिनों आम बजट को पेश करते हुए सरकार ने आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर जनता को समझाने का प्रयास भी किया। लेकिन जमीन पर जनता अभी भी महंगाई की मार झेल रही है। पेट्रोल 100 रुपए से अधिक कीमत पर बेचा जा रहा है। एलपीजी सिलेंडर की कीमत कई राज्यों में एक हजार से ऊपर है।
इन चुनौतियों के बीच इस साल यह पहला मौका है जब भाजपा के सामने एक नहीं कई कारण हैं जो चुनाव में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन देखने वाली ये होगी कि भाजपा एक बार फिर चुनावी नैय्या पार लगाती है या जनता विपक्ष को मौका देकर भाजपा को बैकफुट में धकेलती है।