बॉम्बे हाई कोर्ट ने ठाणे पुलिस को निर्देश दिया कि वह नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े के खिलाफ 28 फरवरी तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करे। अदालत ने यह निर्देश 1997 में अपने रेस्टोरेंट और बार के लिए शराब लाइसेंस प्राप्त करते समय धोखाधड़ी और जानबूझकर गलत जानकारी देने के आरोप में दर्ज एक प्राथमिकी के संबंध में दिया है।
कोर्ट ने कहा कि समन का पालन करते हुए वानखेड़े को 23 फरवरी (बुधवार) को ठाणे पुलिस के समक्ष पेश होना होगा। इसके साथ ही पीठ ने उन्हें जांच में अपना पूरा सहयोग देने को कहा। पीठ ने कहा कि मामले के गुण-दोष पर गौर किए बिना, मामले के तथ्यों और विशेष परिस्थितियों में, किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण दिया जा सकता है। पीठ ने कहा कि मामले में कुछ भी जरूरी नहीं था और इसे 28 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
जस्टिस शिंदे ने कहा, ‘कई कैदी वर्षों से जेल में बंद हैं और हम उनकी याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर पा रहे हैं। ‘वहीं न्यायमूर्ति बोरकर ने 1997 के मामले में वानखेड़े को हिरासत में लेने की पुलिस की मंशा पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, ‘यह 1997 का अपराध है। आप (पुलिस) अब क्या करने जा रहे हैं?’ लोक अभियोजक अरुणा कामत पई ने अदालत को सूचित किया कि पुलिस ने 20 फरवरी को वानखेड़े को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 ए के तहत नोटिस जारी कर 23 फरवरी को पेश होने के लिए कहा था।
इस पर, वानखेड़े के वकील आबाद पोंडा और निरंजन मुंदरगी ने कहा कि वह (वानखेड़े) पुलिस के सामने पेश होने के लिए तैयार हैं, लेकिन मामले की प्रकृति संवेदनशील होने के कारण और पुलिस पर राजनीतिक दबाव होने की आशंका होने के बीच, याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख तक उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
पोंडा ने कहा, ‘वह (वानखेड़े) 1997 में नाबालिग थे। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकती। जिन अपराधों के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, उनमें केवल सात साल तक की सजा है।’ महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मलिक के वकील फिरोज भरूचा ने कहा, ‘याचिका में मंत्री के खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए हैं और इसलिए वह उसका जवाब देना चाहेंगे।’