शिवपाल सिंह यादव का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अचानक मिलना अपने आप में प्रदेश की राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत दे रहा है। सवाल है कि शिवपाल यादव का अगला कदम आखिर क्या होगा? क्या वह बहू अपर्णा की तर्ज पर भाजपा की शरण में तो नहीं जाएंगे? वैसे पिछले लोकसभा चुनाव से पहले उनके भाजपा में जाने की पूरी बिसात बिछ चुकी थीं लेकिन बाद में शिवपाल खुद ही ऐन वक्त पर पीछे हट गए।
भाई के बराबर भतीजे से नहीं मिला सम्मान
वजह साफ है, बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के हाथ से सपा की बागडोर जाने के बाद शिवपाल का राजनीतिक घर ही पराया हो गया। राजनीतिक मजबूरियों के चलते विधानसभा चुनाव में अखिलेश के साथ आए लेकिन पहले वाला सम्मान न मिलने की कसक उनके दिल में हर मौके पर दिखी। मुलायम के सपा मुखिया रहते शिवपाल सपा में हमेशा नंबर दो की हैसियत में रहे। उनका सम्मान होता रहा। उनकी सिफारिश पर टिकट ही नहीं मंत्री बनाए जाते रहे। मगर, सपा की कमान अखिलेश के हाथ में आने के बाद सम्मान न मिलने की वजह से यह दूरियां बढ़ती गईं। माना जा रहा है कि शिवपाल अब उम्र के इस पढ़ाव पर चाहते हैं कि उनके पास भी एक सुरक्षित घर हो और बेटे का राजनीतिक भविष्य भी संरक्षित हो सके। शिवपाल की भाजपा से नजदीकियों के पीछे भी यही अहम वजह मानी जा रही है।
पहले भी बन भी नजदीकियां
यह जगजाहिर है कि शिवपाल बड़े भाई मुलायम की हमेशा इज्जत करते रहे हैं। मुलायम के सम्मान के लिए वह अखिलेश से नाराजगी का भरा कड़ुवा प्याला भी विधानसभा चुनाव में पी गए। सपा से बेघर होने के बाद उन्होंने भले ही अलग पार्टी बनाई पर भाजपा से उनकी नजदीकियां बनी रही। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी शिवपाल के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं आम हुई थीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर जब उनसे मिलने उनके घर तो शिवपाल भी साथ गए थे। विधानसभा चुनाव में भी योगी की कानून व्यवस्था की तारीफ कर भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर होने का संकेत दे दिया था।