कांग्रेस के साथ लंबी वार्ता के बाद भी उसके साथ न जाने के प्रशांत किशोर के फैसले को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस उनके कुछ सुझावों और मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं थी और इसी के चलते बात नहीं बन सकी। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर अपने लिए कांग्रेस में अहमद पटेल जैसा रोल चाहते थे, जिस पर हाईकमान में सहमति बनती नहीं दिखी। लेकिन अब एक नई बात प्रशांत किशोर कैंप की ओर से सामने आई है। पीके के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि राहुल गांधी की पूरी प्रजेंटेशन से बेरुखी ने भी बात को बिगाड़ने का काम किया।
प्रशांत किशोर के सूत्रों का कहना है कि उन्हें कांग्रेस को लेकर दो संदेह थे। पहला यह कि कांग्रेस लीडरशिप के मामले में बड़े बदलाव को लेकर तैयार नहीं थी, जिसे लेकर उन्होंने कहा था कि प्रियंका गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाए या फिर किसी गैर-गांधी नेता को कमान दी जाए। इस पर कांग्रेस में सहमति बनती नहीं दिखी। इसके अलावा राहुल गांधी की इस पूरी कवायद से बेरुखी भी प्रशांत किशोर के मन में संदेह पैदा करने की वजह बन गई। हाईकमान के साथ प्रशांत किशोर की बैठकों से एक तरफ राहुल गांधी ने दूरी बनाए रखी तो वहीं ऐन मौके पर वह विदेश दौरे पर चले गए।
क्यों कांग्रेस पर भरोसा नहीं जता पाए प्रशांत किशोर
भले ही पार्टी अब भी कह रही है कि वह बदलाव के लिए तैयार है, लेकिन प्रशांत किशोर को राहुल गांधी के रवैये के चलते उस पर भरोसा नहीं है। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘हम एक पार्टी हैं और उसमें बदलाव के लिए हम प्रक्रिया में हैं। हम निश्चित तौर पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं की उम्मीदों को पूरा करने के लिए बदलाव करने को तत्पर हैं।’ पीके के सूत्रों का कहना है कि उन्हें लगता है कि कांग्रेस का नेतृत्व उनके दिए सुझावों पर अमल के लिए तैयार नहीं दिखता है। इसके अलावा राहुल गांधी तो इसमें कोई रुचि ही नहीं दिखा रहे हैं।
दिग्विजय ने साफ किए इरादे, पार्टी को खुद ही करना होगा सुधार
इस बीच कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह ने साफ भी कर दिया है कि पार्टी को किसी कंसल्टेंट की जरूरत नहीं है बल्कि खुद में सुधार करना होगा। एक ट्विटर यूजर के ट्वीट पर जवाब देते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘मैं सहमत हूं। अंत में कांग्रेस को ही खुद में सुधार करना होगा। कंसल्टेंट हो या न हो। मुझे चिंतन शिविर से बड़ी उम्मीद है कि उसके जरिए नई कांग्रेस बनने की राह तय होगी, जो वक्त की जरूरत भी है।’