जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों को नामित विधायकों के तौर पर एंट्री दी जा सकती है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा एवं लोकसभा सीटों के लिए फिलहाल परिसीमन चल रहा है और अपनी फाइनल रिपोर्ट में आयोग की ओर से यह सिफारिश सरकार से की जा सकती है। दरअसल कश्मीरी पंडितों की आबादी घाटी में नाम मात्र की है और 1990 में हिंसा के बाद पलायन करने वाले परिवारों की वापसी भी बहुत सीमित है। ऐसे में उन्हें प्रतीकात्मक तौर पर प्रतिनिधित्व देते हुए नामित सदस्य विधानसभा भेजे जा सकते हैं। इस प्रावधान पर परिसीमन आयोग विचार कर रहा है। आयोग का कार्यकाल 6 मई को समाप्त हो रहा है।
दूसरे इलाके में बसे लोगों को भी वोटिंग का अधिकार देने पर विचार
अहम बात यह है कि परिसीमन आयोग की सिफारिश में इन नामित सदस्यों को विधानसभा में किसी भी मसले पर होने वाले मतदान में वोटिंग का अधिकार भी दिया जा सकता है। पैनल का मानना है कि कश्मीरी पंडितों को राज्य की व्यवस्था में भागीदारी का अवसर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा यह भी चर्चा हुई है कि क्या पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जहां भी हैं, वहीं से जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में मतदान कर सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधिमंडलों से परिसीन आयोग के सदस्यों ने बात की है। इसके बाद इस पर सहमति बनी है कि विधानसभा में कश्मीरी पंडितों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
सिक्किम में है इस तरह के रिजर्वेशन की व्यवस्था
परिसीमन आयोग में रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जस्टिस रंजना देसाई और मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा शामिल हैं। विधानसभा में कश्मीरी पंडितों का यह प्रतिनिधित्व धर्म या जाति के आधार पर नहीं होगा। इसकी बजाय इसका आधार यह होगा कि वे पीढ़ियों से राज्य की राजनीतिक व्यवस्था के हिस्सेदार रहे हैं। इस व्यवस्था का उदाहरण सिक्किम से लिया गया है, जहां बौद्ध भिक्षुओं को नामित सदस्य के तौर पर भेजने का नियम है। जम्म-कश्मीर विधानसभा में चुनाव के माध्यम से कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधित्व की बजाय नामित सदस्यों की व्यवस्था को ज्यादा सही माना जा रहा है। अब तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दो महिला सदस्यों को भेजने की व्यवस्था रही है।