वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग पर उच्च न्यायालय ने बुधवार को बंटा हुआ फैसला सुनाया। करीब सात साल से लंबित इस मसले पर एक न्यायाधीश ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के पक्ष में फैसला दिया, जबकि दूसरे ने इसके विपक्ष में अपनी राय दी। हालांकि, दोनों ने पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की छूट दे दी।
पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376बी व धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। उन्होंने कहा कि पति या अलग रह रहे पति द्वारा 18 वर्ष से अधिक उम्र की पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बगैर यौन संबंध बनाना, उसके संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
वहीं, जस्टिस सी. हरि शंकर ने कहा, यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है। आरटीआई फाउंडेशन व अन्य ने कानून की वैधता को चुनौती दी है। कहा है कि यह उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करती है, जिनके पति उनकी सहमति के बगैर यौन संबंध बनाते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग पर खंडित फैसला देते हुए कहा है कि विवाहित महिलाओं के अधिकार को सम्मान और मान्यता देने की जरूरत है। मामले में अलग-अलग फैसला देते हुए जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि समाज में महिलाओं को सशक्त करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यदि महिलाओं को सशक्त नहीं किया गया तो उन्हें देवी मानने का कोई मतलब नहीं है।