महाराष्ट्र के मंत्री एकनाथ शिंदे के लिए “असली” शिवसेना पर दावा करना आसान नहीं हो सकता है। शिंदे के पास उनकी पार्टी के बहुमत वाले विधायकों का समर्थन है। इसी के बल पर लगतार सत्तारूढ़ एमवीए गठबंधन को गिराने की धमकी दे रहे हैं। चुनाव आयोग को इन सवालों का जवाब देना उनके लिए आसान नहीं होगा कि असली शिवसेना कौन है? पार्टी सिंबल का दावा कौन करेगा?
चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के अनुच्छेद 15 के तहत जब कोई विवाद उत्पन्न होता है तो चुनाव आयोग पहले पार्टी के संगठन और उसके विधायिका विंग के भीतर प्रत्येक गुट के समर्थन की जांच करता है। फिर यह राजनीतिक दल के भीतर शीर्ष समितियों और निर्णय लेने वाले निकायों की पहचान करता है। ईसी यह जानने के लिए आगे बढ़ता है कि उसके कितने सदस्य या पदाधिकारी किस गुट में वापस आ गए हैं। आयोग प्रत्येक खेमे में सांसदों और विधायकों की संख्या भी गिनता है। आपको बता दें कि यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और रिजनल पार्टियों के विवादों पर लागू होता है।
1964 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक अलग समूह ने ईसीआई से संपर्क किया और उन्हें सीपीआई (मार्क्सवादी) के रूप में मान्यता देने का आग्रह किया। इसने आंध्र प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल के सांसदों और विधायकों की एक सूची प्रदान की जिन्होंने इसका समर्थन किया। चुनाव आयोग ने गुट को सीपीआई (एम) के रूप में मान्यता दी। आयोग ने पाया था कि तीन राज्यों में अलग-अलग समूह का समर्थन करने वाले सांसदों और विधायकों द्वारा प्राप्त वोटों में 4% से अधिक की वृद्धि हुई।
समाजवादी पार्टी ने भी 2017 में विभाजन देखा। अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह यादव से नियंत्रण छीन लिया। मुलायम ने चुनाव आयोग से संपर्क किया और कहा कि वह पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे और चुनाव चिन्ह उनके गुट के पास रहना चाहिए। इसका अखिलेश खेमे ने विरोध किया था। इस खेमे ने पार्टी के विभिन्न पदाधिकारियों, सांसदों, विधायकों और जिलाध्यक्षों द्वारा हलफनामा दायर कर दावा किया था कि बहुमत तत्कालीन सीएम के पास था। आखिरकार दोनों पक्षों को सुनने के बाद चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले धड़े को साइकिल का चुनाव चिह्न देने का फैसला किया।
महाराष्ट्र में विद्रोही गुट 41 विधायकों के समर्थन का दावा करता है और शिवसेना के चुनाव चिह्न ‘धनुष और तीर’ के उपयोग की मांग के लिए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाएगा। अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि चुनाव आयोग या तो गुट के पक्ष में फैसला कर सकता है या उनमें से किसी के भी पक्ष में फैसला नहीं कर सकता है।