तुर्की और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों का साथ मिलने और रूस द्वारा नजरअंदाज किए जाने के बाद अब आर्मेनिया को भारत का साथ मिला है। भारत और आर्मेनिया के बीच हथियार समझौता हुआ है।
समझौते के तहत भारत, आर्मेनिया को पिनाका रॉकेट लॉन्चर, मिसाइल और गोला बारूद की मदद करेगा। द इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक डिफेंस इंडिया ने दोनों देशों के बीच हथियारों के निर्यात के लिए एक आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं। फिलहाल सरकार ने अनुबंधों के मूल्य का खुलासा नहीं किया है। हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, भारत आने वाले महीनों में 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के हथियारों की आपूर्ति करेगा।
90 किमी दूर दुश्मन को तबाह कर सकता है पिनाका
पहली बार में भारत, आर्मेनिया को स्वदेशी पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर निर्यात करेगा। पिनाका का यह पहला निर्यात ऑर्डर है। पिनाका एक अपग्रेटेड रॉकेट प्रणाली है। डीआरडीओ की टेक्नोलॉजी के आधार पर इन रॉकेट प्रणालियों को डेवलप किया गया है। पिनाका एमके-आई रॉकेट प्रणाली की मारक क्षमता लगभग 45 किमी और पिनाका-II रॉकेट सिस्टम की मारक क्षमता 60 किमी है। पिनाका-II को एक गाइडेड मिसाइल की तरह तैयार किया गया है। पिनाका रॉकेट सिस्टम 44 सेकेंड में 12 रॉकेट लॉन्च करती है। यानी करीब 4 सेकेंड में एक रॉकेट लांच होता है। रॉकेट लॉन्चर की रेंज 7 KM के नजदीकी टारगेट से लेकर 90KM दूर बैठे दुश्मन को नेस्तानाबूत कर सकती है।
एंटी टैंक रॉकेट और गोला बारूद भी देगा भारत
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, आर्मेनिया को एंटी टैंक रॉकेट और गोला बारूद भी देने जा रहा है। ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह कदम हथियारों के निर्यात को बढ़ाने के सरकार के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए उठाया गया है। केंद्र ने 2025 तक विदेशों में 35,000 करोड़ रुपये के हथियार सिस्टम बेचने का लक्ष्य रखा है। पिछले साल तक सालाना रक्षा निर्यात 13 हजार करोड़ था। इस निर्यात को मुख्यतौर पर प्राइवेट सेक्टर की ओर से किया गया था।
तीन दशक से चल रहा दोनों देशों के बीच विवाद
बता दें कि अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच तीन दशक से भी अधिक समय से विवाद चल रहा है। सोवियत शासन के अधीन रहे ये देश विघटन के बाद अलग-अलग देश बने। इसके बाद आर्मेनिया ने नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। नागोर्नो-कराबाख इलाका यूं तो अजरबैजान की सीमा में आता है मगर इस इलाके में अधिकांश आबादी आर्मेनियाई मूल की है। इस क्षेत्र को लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अजरबैजान के क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन यहां 2020 तक आर्मेनिया का शासन चल रहा था।
नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र फिर से हासिल किया
अजरबैजान ने 2020 की लड़ाई में नागोर्नो-कराबाख इलाके को फिर से हासिल कर लिया। इस युद्ध में अजरबैजान की तुर्की और पाकिस्तान ने अपने हथियारों से खूब मदद की। चूंकि अजरबैजान एक मुस्लिम मुल्क है तो उसे इन दोनों देशों का भी समर्थन मिलता रहा है। तुर्की में बने टीबी-2 ड्रोन से अजरबैजान के जमकर तबाही मचाई और आर्मीनिया की सेना के हौसले पस्त कर दिए। तुर्की के इन ड्रोन विमानों ने आर्मीनिया के तोप, टैंक और अन्य घातक हथियारों नष्ट कर दिया था। वहीं अब तक आर्मेनिया की मदद करता आ रहे रूस ने 2020 में 44 दिनों तक चले जंग से आंखें मूंदे रखना बेहतर समझा। नागोर्नो-कराबाख पर अजरबैजान के कब्जे के बाद रूस केंद्र में आया और संघर्ष विराम कराकर इस क्षेत्र में अपने 2,000 रूसी सैनिकों को तैनात कर दिया। छह सप्ताह तक चले इस जंग में 6,500 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। वहीं, बीते 30 साल में अभी तक यहां 30 हजार से ज्यादा आम नागरिक मारे जा चुके हैं।
भारत के लिए अनदेखी करना मुश्किल
नागोर्नो-कराबाख इलाके को कब्जा करने के बाद अजरबैजान का उदय और तुर्की-पाकिस्तान सैन्य सहयोग एक संभावित टेम्पलेट एक चेतावनी संकेत है जिसे भारत अब और अनदेखा नहीं कर सकता है। अजरबैजान ने इस महीने की शुरुआत में तुर्की और पाकिस्तान के साथ ‘थ्री ब्रदर्स’ नाम से युद्धाभ्यास भी किया है। पिछली बार रूस के हस्तक्षेप के बाद अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच में एक समझौता हुआ था। लेकिन इस बीच रूस के यूक्रेन की जंग में फंसने के बाद अब अजरबैजान ने एक बार फिर से अपने दबाव को तेज कर दिया है। इस महीने की शुरुआत में अजरबैजान ने आर्मेनिया पर हमला कर दिया था जिसमें दोनों तरफ के लगभग 100 लोग मारे गए थे।
कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थक है आर्मेनिया
वहीं, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अजरबैजान अपने सैन्य संबंधों को बेहतर बनाने के लिए चीनी मूल के जेएफ -17 लड़ाकू विमान हासिल करने के लिए पाकिस्तान से करार करने वाला है। इसके साथ ही तुर्की और अजरबैजान कश्मीर मुद्दे पर हमेशा ही पाकिस्तान के समर्थक रहे हैं। दूसरी ओर आर्मेनिया, कश्मीर मुद्दे पर भारत को अपना स्पष्ट समर्थन देता है। दिलचस्प बात यह है कि आर्मेनिया की तुलना में भारत के अजरबैजान के साथ अधिक मजबूत आर्थिक संबंध हैं, जिसमें वहां के गैस क्षेत्रों में ओएनजीसी का निवेश भी शामिल है, लेकिन वर्तमान में इसका महत्व कम होता जा रहा है।