मुंबई : चुनाव आयोग के भीतर काफी गड़बड़झाला है। चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे ने इसकी पोल खोलकर रख दी है। अब चुनावी बॉन्ड के मसले पर पूरे देश की निगाहें चुनाव आयोग की ओर लगी हुई हैं कि देखें वह कल क्या करता है? अब लोगों के मन में यही सवाल है कि क्या कल शुक्रवार की डेडलाइन तक चुनाव आयोग चुनावी बॉन्ड खरीदनेवालों के नाम सार्वजनिक करेगा या फिर चुनावी चंदे के मामले में कोई पेच फंसा देगा। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी मामले में सत्ताधारी भाजपा के इशारे पर पेच फंसाने में चुनाव आयोग माहिर है।
गौरतलब है कि शिवसेना के नाम और चिह्न आवंटन के मामले में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पहले से ही विवादों के घेरे में है और लोग उसके भेदभावपूर्ण रवैए पर सवाल उठा रहे हैं। ताजा मामले में चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कल शुक्रवार की शाम तक एसबीआई से मिले डेटा को सर्वाजनिक करना है। चुनाव आयोग इसे अपने वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। एसबीआई ने दो पीडीएफ फाइल एक पेन ड्राइव में चुनाव आयोग को सौंपा है। आश्चर्य की बात है कि जिस डेटा को देने के लिए एसबीआई ३० जून का वक्त मांग रही थी, उसे सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद एक दिन में ही कैसे दे दिया यानी एसबीआई बहाना बना रही थी। तो सवाल है कि यह बहाना वह क्यों और किसके लिए बना रही थी? जाहिर सी बात है चुनाव का समय आ गया है और भाजपा इस मामले को टालना चाहती थी। बहरहाल, जिस तरह से अतीत में चुनाव आयोग ने प्रजातंत्र को पंगु बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, उससे लोगों के मन में संदेह है कि क्या चुनाव आयोग ऐसा सफलतापूर्वक कर पाएगा? गौरतलब है कि चुनावी चंदे के मामले में चुनाव आयोग ने लंबे समय तक चुप्पी साध रखी थी। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को कड़ी फटकार लगाई तब जाकर चुनाव आयोग के मुंह से बोल फूटे हैं। अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद चुनाव आयोग में अकेले मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार बचे हैं। अब राजीव कुमार का कहना है कि वे हर हाल में कल चुनावी चंदे के डेटा को सार्वजनिक करेंगे। राजीव कुमार ने बुधवार को कहा कि चुनाव आयोग चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी समय पर सार्वजनिक करेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक ने १२ मार्च को चुनाव आयोग को चुनावी बॉन्ड का विवरण सौंप दिया है। कुमार ने कहा कि वह फिर से डेटा देखेंगे और निश्चित रूप से समय पर इसका खुलासा करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को १२ मार्च तक चुनावी बॉन्ड का विवरण चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था। अब राजीव कुमार कह रहे हैं कि ‘जनता और मतदाता जानने के हकदार हैं कि राजनीतिक दलों को कौन पैसा दे रहा है। चुनाव आयोग हमेशा पारदर्शिता के पक्ष में रहा है और चुनावी बांड मामले में भी हमारा रुख यही था।’
असल में यह राजीव कुमार नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई का डर बोल रहा है। अब सवाल है कि चुनाव आयोग कितना पारदर्शी रहा है, यह सभी जानते हैं। पिछले कई वर्षों से गुप्त चुनावी चंदे का कारोबार चल रहा था, पर चुनाव आयोग ने मौन साध रखा था। इस चुनावी बॉन्ड के आने से पहले लोगों को पता रहता था कि किसे कितना और किसने चंदा दिया है। मगर भाजपा की सरकार ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए चुनावी चंदे को गोपनीय बना दिया। यह सच है कि चुनावी चंदा हर पार्टी को मिला है पर यह भी तो सच है कि सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। अब भाजपा को यही डर है कि इस चंदे के देनदारों की लिस्ट बाहर आते ही कुछ चुनिंदा कॉरर्पोरेट घराने से उसकी सांठ-गांठ सार्वजनिक हो जाएगी।