नई दिल्ली – केंद्र की मोदी सरकार द्वारा महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। उन दावों की हकीकत झूठी साबित हो रही है। बता दें कि सरकार ने ३० साल पहले गठित राष्ट्रीय महिला कोष (आरएमके) को बंद कर दिया है। सरकार ने यह निर्णय उस सिफारिश के बाद लिया, जिसमें यह कहा गया था कि इसकी प्रासंगिकता खत्म हो गई है। एक गजट अधिसूचना के अनुसार, इसकी वजह यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए पर्याप्त वैकल्पिक ऋण सुविधाएं उपलब्ध हैं। गौरतलब है कि राष्ट्रीय महिला कोष को १९९३ में लॉन्च किया गया था। इसकी वजह ये थी कि अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं को कोलेट्रल लोन प्रदान किया जाए। इस बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि प्रधान आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में राष्ट्रीय महिला कोष को बंद करने की सिफारिश की गई है। इसकी वजह ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार होना है। इसके अलावा कोलेट्रल लोन की आसान उपलब्धता के बाद इसकी प्रासंगिकता खो गई है।
इस अधिसूचना में कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत बैंकों से मुफ्त माइक्रो क्रेडिट भी दिया जा रहा है। अधिसूचना में यह भी बताया गया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन और पीएम मुद्रा योजना जैसी सरकारी योजनाओं ने लाखों स्वयं सहायता समूहों का सफलतापूर्वक पोषण हुआ है। ऐसे में ये स्वयं सहायता समूह विशाल बैंकिंग नेटवर्क और सस्ते ऋण सुविधाओं तक पहुंच सकते हैं।