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जल संकट से जूझ रहे पालघर के आदिवासी

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पालघर – एक तरफ मायानगरी मुंबई अपनी चमक दमक को लेकर पूरी दुनिया में जानी-पहचानी जाती है तो वहीं मुंबई से कुछ ही दूरी पर पालघर जिले के कई आदिवासी गांव पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं। लेकिन शिंदे सरकार कुंभकर्णी नींद सोई है। पालघर में चढ़ते तापमान के साथ ही ग्रामीण इलाकों में पानी की किल्लत भी शुरू हो गई है। मार्च महीने में ही यहां पानी सूखने लगा है। इसलिए लोगों को घर से दूर पानी लेने जाना पड़ रहा है। गर्मी के शुरू होते ही पालघर के वाडा,जव्हार, मोखाडा तालुका के आदिवासियों के गांव में पानी की भारी किल्लत शुरू हो गई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मार्च में यह हाल है तो अप्रैल, मई में क्या होगा। पालघर के ग्रामीण इलाकों में पेयजल की किल्लत सभी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा रहा है। यहां के ग्रामीणों को पानी व विकास कार्यों के सपने दिखाकर राजनीतिक पार्टियों ने वोट तो हासिल किए लेकिन हर बार वे अपने वादे भूल गए।
इन दिनों पानी का स्रोत नीचे जाने से मोखाडा ,जव्हार, वाडा के ६ बड़े गांवों और ३६ छोटे गांवों में १६ टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। जानकारों के मुताबिक तीन महीने में यहां पेयजल संकट और गंभीर होगा। अगले कुछ महीनों में सैकड़ों गांवों में पानी की समस्या होगी और ६० से अधिक गांवों को टैंकरों से पानी की आपूर्ति करनी होगी। फिलहाल मोखाडा में १० टैंकर जव्हार में ५ और वाडा में १ टैंकर पानी की सप्लाई में लगाए गए हैं। जो ६ बड़े गांवो और ३६ छोटे जलसंकट से जूझ रहे गांवो में पेयजल की सप्लाई कर रहे हैं।

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