मुंबई – 1 अप्रैल से दर्दनिवारक, एंटीबायोटिक्स, एंटी-इंफेक्शन जैसी 800 जरूरी दवाओं के दाम बढ़ने से आम लोगों पर महंगाई का दबाव बढ़ने वाला है। इनमें से अधिकतर दवाएं लोगों द्वारा नियमित रूप से उपयोग की जाती हैं। इसलिए, इन दवाओं की कीमतें सरकार द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। ये कंपनियां प्रति वर्ष अधिकतम 10 प्रतिशत तक दवा की कीमतें बढ़ा सकती हैं।
इसमें पैरासिटामोल, एनीमिया की दवाएं, विटामिन और खनिज जैसी दवाएं शामिल हैं। इस श्रेणी में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए जरूरी कुछ दवाएं और स्टेरॉयड भी शामिल हैं.
पिछले कुछ सालों में दवाओं में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों की कीमतें 15 से 130 फीसदी तक बढ़ गई हैं. इसके अलावा पैरासिटामोल 130 फीसदी, एक्सीसिएंट्स 18 से 262 फीसदी, ग्लिसरीन और प्रोपलीन ग्लाइकोल सहित सॉल्वैंट्स 263 फीसदी, सिरप 83 फीसदी, इंटरमीडिएट्स 11 से 175 फीसदी, पेनिसिलिन 175 फीसदी की कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखी गई है. जाहिर है पिछले कुछ दिनों से दवा कंपनियों की ओर से लगातार कीमत में बढ़ोतरी की मांग की जा रही थी. इससे पहले 2022 में दवा की कीमतों में 12 फीसदी और 10 फीसदी की बढ़ोतरी की गई थी.