मुंबई – मुंबई मेट्रो वन, 2007 में बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) मॉडल के तहत शुरू की गई शहर की पहली मेट्रो परियोजना, संयुक्त उद्यम भागीदारों के बीच विवादों का विषय रही है। हाल ही में राज्य कैबिनेट ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और पूर्व मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ की एक रिपोर्ट को मंजूरी दे दी, जिसमें आर-इंफ्रा की हिस्सेदारी का मूल्य 4,000 करोड़ रुपये आंका गया था। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने इस रिपोर्ट की कॉपी मांगने पर एमएमआरडीए ने स्पष्ट किया कि यह दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं कराए जा सकते क्योंकि वे व्यावसायिक प्रकृति के हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए से जॉनी जोसेफ द्वारा पेश की गई रिपोर्ट की कॉपी मांगी थी। एमएमआरडीए के उप परिवहन अभियंता गजानन ससाने ने आरटीआई आवेदन के 1 महीने के बाद गलगली को सूचित किया कि यह दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं कराए जा सकते क्योंकि वे व्यावसायिक प्रकृति के हैं।
जनवरी 2023 में अनिल गलगली को इन्हीं गजानन ससाने ने सूचित किया था कि अधिग्रहण प्रक्रिया प्रगतीपथ पर हैं प्रक्रिया पूर्ण होने पर जानकारी दी जाएगी। उस वक्त ससाने द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत अनिल गलगली को प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने जुलाई 2020 में एमएमआरडीए से एक पेशकश कर मुंबई मेट्रो वन अधिग्रहित करने का अनुरोध किया था। मुंबई में पहले मेट्रो अनुबंध में 70:30 की इक्विटी संरचना है, इक्विटी संरचना 353 करोड़ रिलायंस एनर्जी, 26 करोड़ कनेक्शन, 134 करोड़ एमएमआरडीए जबकि 1192 कर्ज है और वीजीएफ अनुदान 650 करोड़ है, जिसमें 471 करोड़ केंद्र सरकार, 179 करोड़ महाराष्ट्र सरकार का योगदान हैं. मेट्रो की कुल लागत 2355 करोड़ रुपए थी।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित आईएसजी में पूर्व मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ, अतिरिक्त मुख्य सचिव भूषण गगरानी और मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एमएमआरसीएल) के कार्यकारी निदेशक आर रमाना शामिल थे। राज्य कैबिनेट ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और पूर्व मुख्य सचिव जॉनी जोसेफ की एक रिपोर्ट को मंजूरी दे दी, जिसमें आर-इंफ्रा की हिस्सेदारी का मूल्य 4,000 करोड़ रुपये आंका गया था।
एमएमआरडीए और एमएमओपीएल के बीच रियायत समझौते पर 7 मार्च, 2007 को हस्ताक्षर किए गए थे। सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर निर्मित परियोजना की कुल लागत 2,356 करोड़ रुपये थी। अनिल गलगली के अनुसार एमएमआरडीए ने इतनी बड़ी डील में आम नागरिकों का पक्ष नहीं सुना और अब कैबिनेट की मंजूरी के बाद भी रिपोर्ट को साझा नहीं कर रहे है। इस रिपोर्ट से सरकार को 1600 करोड़ का नुकसान हो रहा है। आखिर कौनसे आधार पर 4,000 करोड़ का मूल्यांकन तय किया गया? यह रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद ही जगजाहिर हो सकता है। ऐसी डील में कानूनी सलाह की आवश्यकता थी क्योंकि 2007 से एमएमआरडीए और एमएमओपीएल के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। रिपोर्ट को सार्वजनिक कर जनता की राय एवं सुझाव के बाद ही सरकार इस महंगे डील को मंजूरी दे, यह मांग अनिल गलगली की है।