मतदान में गिरावट लोकतंत्र के लिए अशुभ

0

नवी दिल्ली – चुनाव के महासंग्राम लोकसभा 2024 का आगाज हो चुका है। पहले चरण की वोटिंग भी हो चुकी है जिसमें पहले की अपेक्षा कम वोटिंग हुई है। पहले चरण के तहत 19 अप्रैल को 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर वोटिंग हुई। सभी सीटों पर 62.37 फीसदी मतदान हुआ। सबसे ज्यादा वोटिंग त्रिपुरा में 80.17 फीसदी हुई। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 77.57 प्रतिशत, मेघालय में 74.21 प्रतिशत, पुडुचेरी में 73.50 प्रतिशत और असम में 72.10 प्रतिशत मतदान हुआ। अगर 2019 में हुए मतदान के पहले चरण से तुलना की जाए तो इस बार पहले फेज में कम वोटिंग हुई है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की चर्चा करें तो आठ सीटों पर लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 60.59 प्रतिशत मतदान हुआ। सबसे ज्यादा 66.65 प्रतिशत मतदान सहारनपुर में हुआ जबकि रामपुर 55.75 प्रतिशत मतदान के साथ सबसे कम वोटिंग हुई। वर्ष 2019 के मुकाबले पहले चरण की इन सीटों पर करीब 5.9 फीसदी कम वोट पड़े हैं।

अपेक्षाकृत कम मतदान की वजह से नतीजों को लेकर सियासी दलों की धुकधुकी भी बढ़ गई है। हालांकि इसके अलावा भी हर जगह के आंकड़े बताने के लिए हैं लेकिन सवालों का सवाल यह है कि आखिर जिस ऊर्जा से साथ पक्ष-विपक्ष चुनाव प्रचार कर रहा है उस स्तर पर लोग वोट डालने में रुचि क्यों नही ले रहे। इसके पीछे हर किसी की अलग-अलग मंशा या वजह हो सकती है लेकिन जनता का लोकतंत्र के इतने बडे महापर्व में अपनी भागीदारी न निभाना लोकतंत्र के गलत संदेश देने जैसे है। बीते कई वर्षों से हम समझ व देख रहे हैं कि हमारे एक वोट की कीमत है लेकिन न जाने हम इसको किस आधार पर हल्के में ले लेते हैं। स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि जितना लोग सोशल मीडिया पर अपनी जागरुकता दिखाते हैं उतनी हकीकत में नहीं। तमाम लोग अपना समर्थन अपनी-अपनी पसंदीदा पार्टी व नेता को खुलेआम देते हैं लेकिन उसका फायदा नेता या आपको तभी तो मिलेगा जब उसके लिए वोट डालकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करेंगे। एक आंकड़े के अनुसार देश में 18 साल की उम्र पूरी करने वाले युवाओं में से महज 38 प्रतिशत ने 2024 के चुनाव के लिए खुद को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड कराया है।

राजनीतिक विशेषज्ञ इस घटनाक्रम से चिंतित हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या युवाओं की लोकतंत्र में रुचि खत्म हो गई है? या वह वोट डालना व्यर्थ मानने लगे। वोट वाले दिन की छुट्टी को वह एंजॉय करना चाहते हैं और उनको लगता है कि वोट डालना तो बुजुर्गों व खाली लोगों का काम हैं। लेकिन युवा बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं चूंकि वह यह नहीं समझ पा रहे कि एक तथ्यहीन भविष्य का निर्माण कर रहे हैं। आज वह अपने वोट की कीमत नहीं समझ रहे तो आने वाले समय में आने वाली पीढ़ी के लिए भी इसकी गंभीरता खत्म कर देंगे। हम इस बात को जानते हैं कि भारत युवाओं का देश हैं और सबसे ज्यादा युवा भी हमारे यहां ही हैं। पूरी जिंदगी पड़ी होती है मौज-मस्ती के लिए लिए मात्र एक घंटा निकाल कर वोट डालना उनको बहुत भारी लगता है। युवा चर्चा तो ऐसे करते हैं मानो वह अपनी पूर्ण रूप से स्थिति दर्ज कराएंगे लेकिन चुनाव वाले दिन बिल्कुल गायब हो जाते हैं।

About Author

Comments are closed.

Maintain by Designwell Infotech