मुंबई – मैक्रों को लग रहा था कि इस दांव से वो दक्षिणपंथी दलों को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं. लेकिन चुनाव से पहले हुए चुनावी सर्वे कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. मैक्रों के गठबंधन दल को वामपंथी पार्टी कड़ी चुनौती दे रहे हैं. जानकारों का मानना है कि ऐसा लग रहा है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद देश में पहली बार दक्षिणपंथी सत्ता में आ सकते हैं. इस चुनाव में मैक्रों की रेनेसां पार्टी और उनके गठबंधन को महज 70 से 100 के बीच सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है. लगभग 7 करोड़ की आबादी वाले फ्रांस में चुनाव चल रहे हैं. ये चुनाव 2027 में होने थे. लेकिन यूरोपीय संघ में नौ जून को बड़ी हार मिलने के बाद राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने करीब 3 साल पहले ही फ्रांस की संसद का चुनाव कराने का बड़ा ऐलान कर दिया. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मैक्रौं के लिए समय से पहले संसद भंग कर देने का दांव एक बड़े जुए की तरह है.
मैक्रों को लग रहा था कि इस दांव से वो दक्षिणपंथी दलों को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं. लेकिन चुनाव से पहले हुए चुनावी सर्वे कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं. फ्रांस में सेमी प्रेसिडन्शियल सरकार है. ये भारत से अलग है, क्योंकि भारत में संसदीय शासन है और इस शासन में सभी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होती हैं. चूंकि फ्रांस में सेमी प्रेसिडन्शियल सरकार है इसलिए यहां दोनों के चुनाव अलग-अलग होते हैं. यहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों के पास शक्तियां होती हैं. फ्रांस में राष्ट्रपति को जनता सीधे चुनती हैं. लेकिन ये राष्ट्रपति का चुनाव नहीं है. ये संसद का चुनाव है और भारत की तरह ही संसद में जीतकर आने वाले सदस्य प्रधानमंत्री चुनते हैं. अब आते हैं फ्रांस में चल रहे चुनाव पर. फ्रांस में ईवीएम से चुनाव नहीं होता है. फ्रांस में इस समय निचले सदन का चुनाव चल रहा है. ये भारत के लोकसभा जैसा है. मैक्रों ने अचानक नेशनल असेंबली भंग कर चुनावों का एलान कर दिया था. लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब ये दांव मैक्रों पर उल्टा पड़ सकता है.