ऐतिहासिक रूप से सम्पन्न और सुसंस्कृत मालेगांव को राजनीतिक अपराध ने बदनाम कर दिया है। गुटों में वर्चस्व को लेकर पिछले साढ़े तीन साल में यह गांव अशांत हो गया है। उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को इस क्षेत्र में तीसरी आंख खोलने की जरुरत है. इसके बाद राजनीतिक अपराध के ख़त्म होने की संभावना है।
राष्ट्रवादी के रविराज तावरे पर हुई फायरिंग की घटना के बाद जिले में खलबली मच गई है। यह सही है कि राजनीतिक दृष्टि से मालेगांव हमेशा राजनीतिक पटल पर चर्चा में रहने वाला गांव है। सांसद शरद पवार के सफल राजनीतिक कार्यों से इस गांव से धुरंधर निकले है। पवार का घर भी इसी गांव में है। साथ ही सांसद सुप्रिया सुले और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार का शब्द को मानने वाले गांव के रूप में पहचान है।
पहले गांव में राजनीतिक गुटबाजी थी। उनके बीच वाद-विवाद होता रहता था। अपवाद को छोड़ दे तो उनके बीच मारपीट भी होती थी। लेकिन हथियारों का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया। उनका विवाद शब्द से खत्म होता था और गांव में शांति रहती थी। लेकिन 2017 में हुए जिला परिषद् के चुनाव से लेकर गुटबाजी का विवाद अधिक जोर पकड़ने लगा। दो गुट एक दूसरे को प्यासी नज़रों से देखने लगे। इस वजह से गुटों की राजनीति अधिक व्यापक होने लगी। वाद-विवाद बढ़ गया।
जिला परिषद् चुनाव का वर्ष शुरू होते ही सोशल मीडिया का विवाद के लिए इस्तेमाल होने लगा। एक गुट सोशल मीडिया पर विज्ञापनबाजी करने में मग्न था तो दूसरा गुट उसके खिलाफ संदेश प्रसारित कर रहे थे। इसके बाद राजनीतिक कार्यक्रम अथवा ग्राम सभा में भी जंग होने लगी। पिछले तीन चार महीने में इस गांव में विकास कार्यों का उद्घाटन, कोविड सेंटर, जन्मदिन पर आपत्तिजनक फ्लेक्स के जरिये बड़ा विवाद हुआ है।
एक गुट का विवाद हुआ तो दूसरा गुट यह विवाद कैसे बढे इस पर ध्यान देने लगे। इसकी वजह से व्यक्तिगत खुन्नस बढ़ गई। इसे लेकर कुछ समर्थकों की पिटाई भी हुई। यह विवाद सीधे उपमुख्यमंत्री के दरबाजे पर गया था।
विवाद और बढ़ेगा
आने वाले समय में नगर पंचायत चुनाव होने वाले है। इस अवधि में गुटों का विवाद और बढ़ेगा। नगरपंचायत चुनाव के लिए अच्छे और ईमानदार उम्मीदवारों की जरुरत है। गांव के कई युवा पदाधिकारी गांव में वर्चस्व के लिए गांव के गुंडों को हाथ में रखकर चलते दिखाई दे रहे है।