कोरोना संक्रमण को घातक बनाने में वायु प्रदूषण के उत्सर्जन ने भी अहम भूमिका अदा की है। इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक अध्ययन में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। अत्यंत महीन प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 के सुक्ष्म कण कोरोना संक्रमण के दौरान फेफड़ों पर अत्यंत गंभीर प्रभाव डालते हैं। कोरोना औैर वायु प्रदूषण के बीच संबंधों पर प्रकाश डालने वाला यह अध्ययन भुवनेश्वर के उत्कल विवि, पुणे स्थित इंस्टीटयूट आफ ट्रापिकल मेट्रोलाजी, नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेक्नोलॉजी राउरकेला व आइआइटी भुवनेश्वर के विज्ञानियों ने संयुक्त रूप से किया है। यह अध्ययन देश के उन 16 शहरों में किया गया जहां वाहनों और औद्योगिक इकाइयों के कारण प्रदूषण काफी ज्यादा है।
मानव जनित उत्सर्जन स्त्रोतों और वायु गुणवत्ता डेटा के आधार पर ‘भारत में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5) क्षेत्रों और कोविड-19 के बीच एक लिंक की स्थापना ‘शीर्षक से अध्ययन में बताया गया है कि अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग कोरोनो संक्रमण के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील कैसे हैं।
इस अध्ययन में सामने आया कि देश के इन 16 शहरों में दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषण से ग्रस्त शहर रहा जबकि अहमदाबाद दूसरे स्थान पर, मुंबई तीसरे व पुणे चौथे स्थान पर रहा। इसमें स्पष्ट किया गया कि जिन शहरों में वायु प्रदूषण स्तर सबसे ज्यादा पाया गया, वहां कोरोना मरीजों की संख्या ज्यादा रही। पीएम 2.5 कोरोना संक्रमण को बढाने में कारगर रहा। कोरोना संक्रमण और मौतों के मामले में मुंबई पहले, पुणे दूसरे, दिल्ली तीसरे और अहमदाबाद चौथे नंबर पर रहा। बड़े शहरों में प्रदूषण के हाट स्पाट भी काफी अधिक हैं। इन हाट स्पाट का कोरोना पर कितना असर रहा, इस पर अलग से अध्ययन किए जाने की जरूरत जताई गई है।
इस अध्ययन के तहत मार्च 2020 से नवंबर 2020 तक कोविड-19 मामलों को देखा गया, जबकि आधार वर्ष 2019 से राष्ट्रीय स्तर पर पीएम 2.5 उत्सर्जन भार का अनुमान लगाया गया था। मुंबई और पुणे का मूल्यांकन महाराष्ट्र में किया गया था। अध्ययन में पाया गया किपरिवहन और औद्योगिक गतिविधियों में दहन द्वारा भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल, डीजल और कोयले का उपयोग करने वाले क्षेत्रों में भी कोविड-19 मामलों की संख्या अधिक होती है। मानव स्वास्थ्य और कोविड-19 पर वायु प्रदूषण के प्रभाव का भी समान संबंध था।
अध्ययन ने स्पष्ट रूप से सामने आया कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों में कोविड-19 मामलों की अधिक संख्या पाई जाती है, जहां लंबे समय तक पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता के संपर्क में अपेक्षाकृत अधिक है, खासकर शहरों में जीवाश्म ईंधन के कहीं अधिक उपयोग के कारण।
डॉ. गुरफान बेग (वरिष्ठ विज्ञानी, इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ ट्रापिकल मेट्रोलाजी) का कहना है किसर्वाधिक वायु प्रदूषण वाले शहर तो समस्या का सबब बन ही रहे हैं, जहां पर प्रदूषण के उत्सर्जक ज्यादा हैं, वहां भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। जिन शहरों में पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा है, वहां लोगों के फेफड़े पहले ही इसके असर से प्रभावित होते हैं। यही वजह रही कि वहां पर कोरोना संक्रमण ने भी घातक रूप अपना लिया।
Edited By : Rahanur Amin Lashkar