ऐसा काम करूगा कि लोग अमरीश पुरी को भूल जाएंगे, निगाहें में अनुपम खेर ने लगा दी थी जान

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बॉलीवुड अभिनेता अनुपम खेर ने 1984 की फ़िल्म, ‘सारांश’ से अपने करियर की शुरुआत की। पहली ही फ़िल्म में उन्होंने अपने एक्टिंग का लोहा मनवा लिया था।

साल 1989 में जब उन्हें श्रीदेवी, ऋषि कपूर, अमरीश पुरी अभिनीत ‘नगीना’ के सीक्वल, ‘निगाहें’ में श्रीदेवी और सनी देओल के साथ काम करने का मौका मिला तो वो बेहद खुश हुए थे। वो अमरीश पुरी के अभिनय के कायल थे और जब उन्हें अमरीश पुरी की जगह रोल मिला तो उन्होंने सोच लिया था कि ऐसा काम करेंगे कि लोग उन्हें देख अमरीश पुरी को भूल जाएंगे।

लेकिन जब ट्रायल के दौरान अनुपम खेर ने अपना अभिनय देखा तो सिर पकड़ लिया था। इस किस्से का जिक्र खुद अनुपम खेर ने वाइल्ड फिल्म्स इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने कहा था कि उनके हिसाब से ‘निगाहें’ में उनका अभिनय अभी तक का सबसे खराब अभिनय था।

अनुपम खेर ने बताया था, ‘नगीना बड़ी हिट साबित हुई थी और हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में पहली बार उसका सीक्वल निगाहें बन रही थी। मुझे अमरीश पुरी वाला रोल मिला था क्योंकि पहली फ़िल्म में वो मर जाते हैं। इस फ़िल्म में मैं उनका शिष्य बना था। शूटिंग के दौरान मेरे दिमाग में ये चल रहा था कि मैं अमरीश जी की सारी छाप मिटा दूंगा लोगों की याद से। ऐसा काम करूंगा कि लोग भूल जाएंगे, अमरीश पुरी ने ऐसा कोई रोल किया था।’

अनुपम खेर ने बताया था, ‘जोश में शूटिंग की और डबिंग के वक्त मेरी आंखों में आंसू होते थे कि अरे क्या एक्टिंग की है मैंने। मैं अपनी फ़िल्मों का ट्रायल देखने कभी किसी को नहीं बुलाता था लेकिन निगाहें के लिए मैंने यश चोपड़ा, प्रेम चोपड़ा और कुछ दोस्तों को बुला लिया। फिल्मालय में ट्रायल शुरू हुआ। पहला शॉट देखा तो लगा मैंने तो ओवरएक्टिंग की है। लगा आगे ठीक किया होगा। लेकिन तभी याद आया कि शूटिंग में तो मैंने सारे सीन ऐसे ही किए थे।’

अनुपम खेर ने जब अपना तीसरा सीन देखा तो वो बेहद निराश और शर्मशार हुए। उन्होंने भगवान से विनती करनी शुरू कर दी कि कुछ ऐसा हो ताकि फ़िल्म का ट्रायल रुक जाए।

उन्होंने बताया था, ‘मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि भूचाल आ जाए, ज्वालामुखी फट जाए, थियेटर गिर जाए, जमीन फट जाए और मैं उसमें चला जाऊं..किसी भी तरह बस ट्रायल रुक जाए। मुझे लगता है कि मेरा वो परफॉर्मेंस हिंदी सिनेमा के इतिहास में सबसे खराब परफॉर्मेंस था।’

अनुपम खेर का काम इस फ़िल्म में तो ज्यादा पसंद नहीं किया गया लेकिन उसी साल आई फिल्म, ‘राम लखन’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। अनुपम खेर को उनके काम के लिए इस फिल्म के अलावा भी 7 और फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले हैं। अनुपम खेर को ‘डैडी’ और ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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