पूरे अफगानिस्तान में तालिबान का कहर जारी है और धीरे-धीरे ये अपने पुराने रंग में वापस आता जा रहा है. अफगानिस्तान में जो हालात हैं, उसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनके प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.
अब कई लोग इसके लिए बाइडेन के बॉस रहे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. नोबल का शांति पुरस्कार जीतने वाले ओबामा के एक फैसले की वजह से आज तालिबान और ज्यादा शक्तिशाली हो गया है. बराक ओबामा ने साल 2014 में 5 तालिबानी आतंकियों को को खतरनाक ग्वांतनामो बे की जेल से रिहा किया था. अब यही आतंकी अफगानिस्तान की सत्ता में लौट आए हैं.
5 आतंकियों को किया गया था रिहा
ओबामा ने जिन 5 आतंकियों को रिहा किया था उसे Gitmo 5 कहा गया था. तालिबान के खैरुल्ला खैरख्वाह चार और आतंकियों के साथ जेल से छोड़ा गया था. इन आतंकियों को अमेरिकी सैनिक सार्जेंट बाओ बेरगडाल के बदले रिहा किया गया था. इस घटना को Prisoner Swap कहा गया था. खैरुल्ला इस समय तालिबान की बड़ी ताकत बन गया है.
खैरुल्ला के साथ मोहम्मद नबी, मोहम्मद फजल, अब्दुल हक वासिक और मुल्ला नुरुल्ला को रिहा किया गया था.मोहम्मद नबी कलात में तालिबान का सिक्योरिटी चीफ था. वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक फजल साल 2000 और 2001 में बड़े स्तर पर शिते मुसलमानों की हत्या में शामिल रहा है. वासिक तालिबान में इंटेलीजेंस का डिप्टी मिनिस्टर था तो नोरुल्ला तालिबान का कमांडर रह चुका है.
ओबामा ने नहीं मानी किसी की बात
अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों ने Gitmo5 को सबसे खतरनाक करार दिया था. एजेंसियों ने ओबामा से अपने फैसले पर पुर्नविचार तक करने को कहा था. ओबामा प्रशासन की तरफ से हर वॉर्निंग को नजरअंदाज कर दिया गया. सिर्फ इतना ही नहीं तालिबान को भरोसा दिया गया कि ये आतंकी कतर में सुरक्षित रहेंगे ताकि ये फिर से अफगानिस्तान में फिर से राजनीति में सक्रिय न हो पाएं.
मगर न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो खैरख्वाह और बाकी आतंकियों ने तालिबान के आतंकियों के साथ कॉन्टैक्ट बनाया हुआ है. इन्होंने कसम खाई थी कि वो अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं को बाहर करके रहेंगे. खैरख्वाह ने तालिबान के शासन को फिर से मजबूत करने में एक बड़ा रोल अदा किया है. न्यूयॉर्क पोस्ट की मानें तो खैरख्वाह दोहा में हुई शांति वार्ता में आधिकारिक वार्ताकार था.
बाकी आतंकी भी आएंगे वापस
खैरख्वाह ने ही मॉस्को में अफगानिस्तान में नियुक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राजदूत जलमय खालीजाद के साथ वार्ता की शर्त रखी थी. अल जजीरा की तरफ से एक रिपोर्ट में कहा गया है कि खैरख्वाह अब निर्वासत में जी रहे अपने बाकी साथियों को भी अफगानिस्तान वापस लाने की तैयारी कर ली है. 20 साल तक अफगानिस्तान में युद्ध जारी रखने के बाद अब अमेरिकी फौजें यहां से जा चुकी हैं.
11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकी हमलों के बाद अफगानिस्तान में विदेशी सेनाएं दाखिल हुई थीं. अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को तालिबान शासित अफगानिस्तान में तलाशने के लिए अमेरिका ने ऑपरेशन लॉन्च किया था. 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल पर कब्जे के साथ ही पूरे अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा कर लिया है. अमेरिकी सेनाओं को अगस्त के अंत में अफगानिस्तान से जाना था मगर दो हफ्ते पहले ही तालिबान के कब्जे ने सबको हैरान कर दिया.