महाराष्ट्र के आदिवासी जिले पालघर में मनसे और बीजेपी की युति(गठबंधन) के बाद राज्य की सियासत का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। अब इस गठबंधन को अन्य आगामी चुनावों में भी कायम रखने की बात सामने आ रही थी। पुणे महानगरपालिका के चुनाव में भी इस गठबंधन के होने की उम्मीद थी। हालांकि अब खुद राज ठाकरे ने इस चर्चा को विराम देने की बात अपने कार्यकर्ताओं से कही है। फ़िलहाल एमएनएस प्रमुख इस मामले पर वेट एंड वॉच की भूमिका अपनाए हुए है
उन्होंने अपने तमाम कार्यकर्ताओं से भी कहा है कि वे काम पर ध्यान दें। पुणे के कार्यकर्ता भी आगामी महानगरपालिका चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन करने की जता चुके हैं। इस वजह से फ़िलहाल यह मुद्दा ठंडे बस्ते में जाता हुआ नज़र आ रहा है। राज ठाकरे ने हाल में पुणे का दौरा भी किया था। आगामी चुनाव के लिए पुणे में प्रभाग रचना में भी बदलाव होने की भी संभावना है। ऐसे में मनसे के अंदर इंटरनल स्क्रूटनी शुरू है।
गठबंधन का कोई असर नहीं होगा
महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत के दौरान कहा कि बीजेपी- मनसे के घटबन्धन का कोई खास असर नहीं पड़ेगा। बीजेपी का दोहरा चरित्र पूरे महाराष्ट्र और देश ने देखा है। जनता के मन से अब बीजेपी उतरने लगी है। बीजेपी को अब यह डर सताने लगा है कि वो अकेले चुनाव नहीं जीत सकती इसलिए अब वो पार्टनर तलाशने में जुटी हुई है।
मुलाकातों का असर हुआ
कुछ दिन पहले महाराष्ट्र बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे से उनके घर कृष्ण कुञ्ज में जाकर मुलाकात की थी। चाय पर हुई चर्चा के बाद पाटिल ने मीडिया से कहा था कि राज ठाकरे ने उन्हें चाय पर आमंत्रित किया था। इसलिए वो उनके घर गए थे। पाटिल ने उस दिन राज ठाकरे की जमकर तारीफ भी की थी। भविष्य में दोनों पार्टियों के गठबंधन की नींव उसी दिन पड़ गई थी। हालांकि पाटिल ने कहा था कि एमएनएस को परप्रांतियों के प्रति अपना नजरिया बदलना होगा तभी यह गठबंधन संभव है।
बढ़ेंगी शिवसेना की मुश्किलें
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और शिवसेना दोनों ही दल राज्य में मराठी मानुस और भूमिपुत्रों की राजनीति करते हैं। मनसे की वजह से शिवसेना को कई सीटों पर नुकसान या फिर हार का सामना करना पड़ा है। फ़िलहाल महाराष्ट्र में बीजेपी सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी है। बावजूद इसके वह सत्ता से बाहर है। शिवसना-बीजेपी की युति(गठबंधन) टूटने के बाद से ही बीजेपी किसी राजनीतिक दल से दोस्ती चाहती थी। ताकि वह शिवसेना की कमी को पूरा कर सके। मनसे के रूप में बीजेपी को वह दोस्त अब मिल गया है।