बॉलीवुड अभिनेता विक्की कौशल जल्दी ही फिल्म ‘सरदार उधम’ में सरदार उधम सिंह के किरदार में नजर आएंगे। फिल्म के ट्रेलर के साथ ही साथ विक्की कौशल भी अपने लुक्स के लिए दर्शकों से खूब वाहवाही लूट रहे हैं। फिल्म 16 अक्टूबर को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज होगी। ऐसे में फिल्म की रिलीज से पहले आपको बताते हैं स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी सरदार उधम सिंह के बारे में कुछ बातें।
शेर सिंह था असली नाम
उधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। शेर सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। शेर सिंह के पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार थे। बचपन में ही शेर सिंह के माता पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद शेर सिंह और उनके भाई मुख्ता सिंह को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया। इस अनाथालय में शेर सिंह को नाम दिया गया उधम सिंह और भाई मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह। हालांकि भाई का साथ भी उधम सिंह के साथ लंबे वक्त तक नहीं रह पाया और साल 1917 में साधु ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके बाद 1918 में उधम ने मैट्रिक के एग्जाम पास किए और साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया।
जलियांवाला बाग नरसंहार से खौला उधम सिंह का खून
13 अप्रैल 1919, एक ऐसी तारीख जो इतिहास में दर्ज है और जिसे याद कर हर भारतीय का न सिर्फ खून खौल उठता है बल्कि आंखें भी नम हो जाती हैं। जी हां… साल 1919 का बैसाखी का वो दिन, जिस तारीख को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। दरअसल 10 अप्रैल 1919 को रॉलेट एक्ट के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद 13 तारीख को पंजाब के अमृतसर में हजारों की तादाद में लोग एक पार्क में जमा हुए थे और दोनों (सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू) की गिरफ्तारी के खिलाफ शांति से प्रोटेस्ट कर रहे थे। इतने में जनरल रेजिनॉल्ड डायर शाम करीब साढ़े पांच- छह बजे वहां पहुंचा और अपनी फौज के साथ उस पूरे पार्क को घेर लिया। इसके बाद बिना कुछ कहे डायर ने सीधे अपनी फौज को गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया। उस फायरिंग में हजारों लोगों ने अपनी जानें गवाईं। इस नरसंहार के बाद पूरे देश में आक्रोश देखने को मिला, वहीं इस बीच एक शख्स ऐसा भी था, जिसका न सिर्फ खून खौल रहा था बल्कि बदला लेने का जुनून भी उफान पर था। ये शख्स कोई और नहीं बल्कि उधम सिंह थे
उधम ने सबक सिखाने की ठानी
जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद उधम सिंह ने जनरल रेजिनॉल्ड डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ ड्वायर ( जिसने कदम कदम पर इस नरसंहार को उचित ठहराया) को सबक सिखाने की ठान ली और इसके बाद वो क्रांतिकारियों के साथ शामिल हो गए। जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड का बदला लेने के लिए उधम सिंह को पूरे 21 साल तक सही मौके का इंतजार करना पड़ा। इस बीच उधम सिंह ने खुद को परिपक्व करने का काम किया। उधम सिंह, जनरल रेजिनॉल्ड डायर और माइकल ओ ड्वायर को मौत की नींद सुलाना चाहते थे लेकिन रेजिनॉल्ड डायर तक पहुंचने से पहले ही बीमारी से उसकी मौत हो गई थी। ऐसे में उधम सिंह ने अपना पूरा ध्यान माइकल ओ ड्वायर पर लगाया
नहीं भागे उधम सिंह
बदला लेने की प्रतिज्ञा पूरी करने के बाद उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की बल्कि वहीं खड़े हो गए , जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और उन पर मुकदमा चला। 4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। जो काम सरदार उधम सिंह ने किया उसकी तारीफ पूरे भारत में की गई, वहीं उधम सिंह को शहीद-ए-आजम की भी उपाधि दी गई।