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समान नागरिक संहिता को लेकर देश में जोरदार बहस के साथ राज्यसभा में पेश किया गया बिल

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यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लेकर देश में बहस तेज हो गई है. कई राज्य सरकारों ने अपने यहां इसको लेकर कमेटी बनाई या बनाने की तैयारी में है तो वहीं दूसरी ओर इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की मांग हो रही है.

यूसीसी यानी सभी धर्म के लाेगों के लिए एक जैसा कानून. शादी-ब्याह, तलाक से लेकर संपत्ति बंटवारे तक एक जैसे नियम. बहरहाल, संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में शुक्रवार को इसी से जुड़ा प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया गया है.

बीजेपी के किरोड़ी लाल मीणा ने इस बिल को कुछ संशोधनों के साथ पेश किया था. हालांकि विपक्षी दलों ने इस बिल का विरोध करते हुए हंगामा किया और वापसी की मांग की. यूसीसी से जुड़ा यह प्राइवेट मेंबर बिल है और अभी यह केवल पेश ही किया गया है. स्पष्ट है कि इस बिल के जरिये कानून बनने तक अभी लंबा रास्ता है.

आइए जानने और समझने की कोशिश करते हैं कि प्राइवेट मेंबर बिल (PMB) क्या होता है और यह संसद में पेश होने वाले आम बिलों से कैसे अलग होता है और इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है.

PMB क्या है और यह कितना अलग होता है?

एक सांसद जो मंत्री नहीं होता है, वो भी संसद का सदस्य होता है, उसे प्राइवेट मेंबर कहा जाता है. अधिकांश सांसद मंत्री नहीं हैं और वे अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के माध्यम से देश के बहुमत का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे में उन्हें भी बिल पेश करने का अधिकार दिया गया है. इन प्राइवेट मेंबर्स द्वारा पेश किए जाने वाले बिलों को प्राइवेट मेंबर बिल कहा जाता है.

सामान्यत: जो बिल जिस मंत्रालय से जुड़ा होता है, उस मंत्रालय के प्रभारी यानी मंत्री वो बिल पेश करते हैं. ये सरकारी बिल कहलाते हैं. सरकारी बिलों को सरकार का समर्थन होता है और वह उसका संसदीय एजेंडा दिखाते हैं. जबकि प्राइवेट बिल के साथ ऐसा नहीं है. कोई भी सांसद अपनी रुचि और एजेंडा के आधार पर भी प्राइवेट बिल पेश कर सकता है. प्राइवेट बिल को मंजूर करने या ना करने का फैसला लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में चेयरमैन का होता है.

प्राइवेट मेंबर बिल की प्रक्रिया क्या है?

सांसद या उनका स्टाफ प्राइवेट मेंबर का बिल का ड्राफ्ट तैयार करता है. जो सांसद प्राइवेट मेंबर बिल पेश करना चाहते हैं, उन्हें कम से कम एक महीने का नोटिस देना होता है. सदन सचिवालय को यह नोटिस देना होता है, जो इसके संविधान के प्रावधानों के अनुपालन और विधेयक पर नियमों के अनुपालन की जांच करते है.

सरकारी बिल को किसी भी दिन पेश किया जा सकता है और उस पर चर्चा की जा सकती है, जबकि प्राइवेट मेंबर बिल को केवल शुक्रवार को पेश किया जा सकता है. एक से ज्यादा बिल हों तो बिल पेश करने का क्रम तय करने के लिए बैलेट सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. प्राइवेट मेंबर बिल और रेजोल्यूशन पर संसदीय कमेटी ऐसे सभी बिलों को देखती है और उनके महत्व के आधार पर उन्हें वर्गीकृत करती है.

कोई प्राइवेट मेंबर बिल कानून बना है?

भारत के 70 से अधिक वर्षों के संसदीय इतिहास में, केवल 14 ऐसे प्राइवेट मेंबर बिल पेश हुए हैं जिन्हें कानून के रूप में पारित किया गया है. पहला प्राइवेट मेंबर बिल 1954 में पारित किया गया था, जो मुस्लिम वक्फ अधिनियम, 1952 बना. वहीं संसद द्वारा पारित अंतिम प्राइवेट मेंबर बिल सुप्रीम कोर्ट (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक, 1968 था. यह 9 अगस्त, 1970 को एक कानून बना.

साल 1970 के बाद से संसद से कोई प्राइवेट मेंबर का बिल पास नहीं हुआ है. 2000 के बाद, 16वीं लोकसभा (2014-19) में सबसे ज्यादा संख्या में प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए गए थे. इनकी संख्या 999 थी. 16वीं लोकसभा में 142 सदस्यों ने बिल पेश किए थे, जिनमें से 34 सदस्यों ने 10 या ज्यादा बिलों को पेश किया है.

PMB के जरिये UCC कानून बन पाएगा?

अब यूसीसी से संबंधित प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया गया है. राज्यसभा में विपक्षी पार्टियों ने इसका पुरजोर विरोध किया है. बीजेपी के कई नेता और मंत्री चाहते हैं कि देश में एक जैसा कानून हो जो सभी धर्मों पर समान रूप से लागू हो. अन्य पार्टियों से भी कई नेता ऐसा चाहते हैं.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि सभी दलों को समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यह राष्ट्र और मानवता के लिए अच्छा होगा. उन्होंने कहा कि अगर कोई पुरुष, किसी महिला से शादी करता है तो नैसर्गिक है. लेकिन कोई चार शादी करता है, तो अप्राकृतिक है. इसलिए प्रगतिशील और शिक्षित मुस्लिम भी ऐसा नहीं करते हैं. उनका कहना है कि यूसीसी किसी धर्म के खिलाफ नहीं है. वहीं दूसरी ओर मुस्ल्मि वक्फ बोर्ड और एआईएमआईएम जैसी पार्टियां इसका विरोध करती आ रही हैं.

जानकार बताते हैं कि पेश होने के बाद किसी भी बिल पर पहले चर्चा होती है. दोनों सदनों में बहुमत से इसे पास कराया जाता है. फिर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कोई कानून अस्तित्व में आता है. यूसीसी को लेकर अभी आम सहमति बनी नहीं है. ऐसे में प्राइवेट मेंबर बिल के जरिये इसके कानून बनने का रास्ता अभी लंबा है.

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