चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके लिए उन्होंने इस पुरानी पार्टी में ‘परिवर्तनकारी सुधारों’ की आवश्यकता का हवाला दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे आगामी गुजरात विधानसभा और 2024 के आम चुनाव को लेकर कांग्रेस के मंसूबों को झटका लग सकता है। एक सूत्र ने कहा, “कांग्रेस की तैयारियों को झटका लगा है। हाल ही में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस को किशोर की रणनीति में उम्मीद दिख रही थी।”
हालांकि, कांग्रेस के नेता किशोर के पार्टी में शामिल होने से इनकार करने को ज्यादा महत्व नहीं दे सकते हैं। खासकर पार्टी के स्पेशल एक्शन ग्रुप में उनकी भूमिका को देखते हुए, जिसे 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए तैयार किया गया है। कांग्रेस 2024 में होने वाले आम चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए एक नई रणनीति तैयार कर रही है।
पीके के सुझावों को लागू करने का काम जारी
सूत्रों ने कहा, “13 मई से 15 मई तक होने वाले उदयपुर नवसंकल्प शिविर में पार्टी के भविष्य का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन उससे पहले प्रशांत किशोर के सुझावों को लागू करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एम्पावरमेंट एक्शन ग्रुप बनाने का फैसला किया। जो लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर काम करेगा।
सूत्रों ने कहा कि पीके ने कांग्रेस को 370 लोकसभा सीटों पर ध्यान केंद्रित करने और अपनी मीडिया रणनीति बदलने की सलाह दी थी। उन्हें एक्शन ग्रुप के सदस्य के रूप में एक पद की पेशकश की गई थी लेकिन उन्होंने कांग्रेस को झटका दिया! सवाल यह है कि क्या कांग्रेस पीके के सुझावों को उनके बिना लागू कर पाएगी?
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को विपक्षी दलों को केंद्र में रखकर भाजपा के खिलाफ मजबूत गठबंधन बनाने की रणनीति भी साझा की थी। सूत्रों ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस के कुछ पुराने सहयोगियों को छोड़ने और बिहार में जदयू, बंगाल में टीएमसी और तेलंगाना में टीआरएस सहित नए सहयोगियों के साथ हाथ मिलाने का प्रस्ताव रखा था।
कांग्रेस के पास ऐसे मजबूत नेता की कमी जो…
इन पार्टियों के अलावा, पीके के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित अन्य लोगों के साथ अच्छे संबंध हैं। कांग्रेस नेता अहमद पटेल की मृत्यु और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को दरकिनार करने के बाद, कांग्रेस के पास एक मजबूत नेता की कमी थी, जो अन्य दलों के साथ बातचीत कर सके। वर्तमान में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी खुद पार्टी