किसान आंदोलन अब कई महीने पुराना हो गया है. मांगे वहीं हैं- तीनों कृषि कानूनों का वापस होना. कई मौकों पर सरकार से बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सड़क पर विरोध प्रदर्शन को भी तेज किया गया, लेकिन सरकार नहीं झुकी.
अब एक बार फिर किसान सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे हैं. 27 सितंबर को भारत बंद (bharat bandh) का ऐलान किया गया है.
जानकारी मिली है कि भारत बंद को सफल बनाने के लिए 17 तारीख से यूपी के सभी जिलों में किसान संगठन ट्रेड यूनियन, युवा संगठन, ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन, व्यापारी संगठन के साथ बैठक करने वाले हैं. पूरी कोशिश है कि हर मोर्चे पर ये बंद सफल रहे और सरकार को उनकी मांगों के आगे झुकना पड़े. लेकिन पिछले अनुभव बताते हैं कि बंद के दौरान बवाल होता है, किसानों की नारेबाजी होती है, कभी-कभार पुलिस बल का इस्तेमाल होता है. लेकिन सरकार किसानों की मांग को ठंडे बस्ते में डाल देती है. ऐसे में इस बार किसान क्या अलग करने वाले हैं और सरकार को किस तरह दवाब में लाने का काम किया जाएगा, ये देखने वाली बात रहेगी.
पहले भी बंद का ऐलान, कितना सफल?
अभी के लिए तमाम किसान 27 सितंबर की तैयारी में लग गए हैं. पहले से ही शहरी इलाकों में भारत बंद के लिए व्यापार मंडलों व विभिन्न कर्मचारी संगठन व ट्रेड यूनियनों से संपर्क साध लिया गया है. कहा जा रहा है कि बेहतर तालमेल के जरिए इस बंद को पूरे देश में सफल बनाया जाएगा. वैसे अभी के लिए किसानों का गुस्सा वैसे भी सांतवें आसमान पर चल रहा है. करनाल में जब से प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठीचार्च हुआ है, सरकार संग उनका रिश्ता और ज्यादा तुल्ख हुआ है. उस केस में भी क्योंकि किसानों की मांग के अनुसार एसडीएम को बर्खास्त नहीं किया गया, ऐसे में किसानों की नाराजगी काफी ज्यादा है जो अब भारत बंद के दौरान साफ महसूस की जा सकेगी.
पिछले साल नवंबर में शुरू हुआ आंदोलन
जानकारी के लिए बता दें कि किसानों ने पिछले साल नवंबर में किसान आंदोलन की शुरुआत की थी. उस समय तो फिर भी किसानों की ओ से लगातार सरकार संग संवाद स्थापित किया जा रहा था, लेकिन अब पिछले कई महीनों से किसान जरूर सड़क पर हैं, लेकिन सरकार संग बातचीत संभव नहीं दिख रही. ऐसे में तकरार बढ़ रही है लेकिन समाधान दिखाई नहीं दे रहा.