महाराष्ट्र के लंबे चले ड्रामे के बाद आखिरकार अब वहां एकनाथ शिंदे की सरकार बन गई है। उद्धव ठाकरे की सरकार तो गिर गई है लेकिन अब उनके सामने शिवसेना को बचाने की बड़ी चुनौती है। इतना ही नहीं राजनीतिक एक्सपर्ट्स अब यह कयास लगा रहे हैं कि बीएमसी चुनाव में अब उद्धव ठाकरे का अगला कदम क्या होगा। क्या वे शिंदे गुट से हाथ मिलाएंगे या कोई और कदम उठाएंगे।
पार्टी बचाने की बड़ी चुनौती
दरअसल, एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद अब एक राजनीतिक पार्टी के रूप में शिवसेना को बचाने की बड़ी चुनौती उद्धव ठाकरे के सामने है। इसके अलावा अगली बड़ी चुनौती बीएमसी चुनाव है क्योंकि शिवसेना के लिए बीएमसी चुनाव काफी अहम होगा। शिवसेना की पकड़ बीएमसी में मजबूत है और पार्टी ने इसे काफी समय तक नियंत्रित भी किया है, लेकिन इस बार जमीन पर समीकरण बदले हैं।
एक्पर्ट्स का यहां तक मानना है कि बीएमसी चुनाव से पहले उद्धव ठाकरे बागी विधायकों से संपर्क साध सकते हैं। इतना ही नहीं उद्धव इसके लिए अगर भाजपा से संपर्क करें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। फिलहाल अभी उद्धव शिवसेना को बचाने में लगे हैं। बीएमसी चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी, यह तब तय होगा जब शिवसेना का संगठन किस ओर बैठेगा यह साफ हो जाएगा।
भाजपा की नजर बीएमसी चुनाव पर
उधर सरकार बनते ही भाजपा ने साफ कर दिया था कि उसका अगला लक्ष्य बीएमसी चुनाव हैं। भाजपा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ये तो झांकी है, मुंबई महानगर पालिका अभी बाकी है। भाजपा राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ ही शिवसेना में बड़ी फूट डालने में सफल हुई और अब उसका अगला लक्ष्य बीएमसी पर कब्जा करना है। ठाणे और डोंबिवली में शिवसेना की काफी मजबूत पकड़ है। पिछले चुनाव में एनसीपी ने नवी मुंबई में जीत दर्ज की थी। ऐसे में शिवसेना के विकल्प के तौर पर भाजपा लोगों तक पहुंचेगी।
बीएमसी चुनाव के आंकड़े
बता दें कि 2017 में बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने 84 और बीजेपी 82 सीटों पर जीत दर्ज की थी। दोनों ने एक-दूसरे को कांटे की टक्कर दी थी। बीएमसी देश की सबसे ज्यादा बजट वाली नगर पालिका है। बीएमसी का कुल बजट 46 हजार करोड़ रुपए का है। शिक्षा का बजट बीएमसी अलग से पेश करती है। इस साल बीएमसी के बजट में 17 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है।