राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्ष अभी ठीक से एकजुट भी नहीं हो पाया था कि एनडीए ने आदिवासी महिला उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के नाम का ऐलान कर उसके लिए बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। एनडीए के इस दांव से जहां कई गैर एनडीए दलों के भी उसके साथ आने की संभावना बढ़ गई है, वहीं यह भी कहा जा रहा है कि मुर्मू के सामने विपक्ष का उम्मीदवार भी कमजोर पड़ रहा है।
विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को मैदान में उतारा है। वे कुछ समय पूर्व भाजपा से तृणमूल में गए थे और तृणमूल कांग्रेस की तरफ से ही उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया। इस पर कांग्रेस समेत कई दलों ने इस प्रकार सहमति प्रकट की जैसे वह महज एक औपचारिकता पूरी कर रहे हों। जानकारों का कहना है कि यशवंत सिन्हा लंबे समय तक भाजपा में ही रहे हैं, इसलिए विपक्ष की तरफ से उन्हें राष्ट्रपति के उम्मीदवार घोषित करने में कोई ठोस दृष्टि और रणनीति नजर नहीं आती है।
दूसरी तरफ, अभी तक टीआरएस समेत कई दलों ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया है। एनडीए से पहले विपक्ष ने उम्मीदवार घोषित किया था जिसके बारे में यह धारणा बनी है कि वह कोई ऐसा उम्मीदवार पेश नहीं कर सका जिसके नाम पर पूरे विपक्ष को एकजुट किया जा सके। खासकर, उन दलों को जो विपक्ष में तो हैं लेकिन तटस्थ बने हुए हैं जैसे बीजद, टीआरएस, वाईएसआर, आम आदमी पार्टी आदि।
एक साथ कई समीकरण साधे
मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर एनडीए ने एक साथ कई समीकरण साधे हैं। वह ओडिशा से ही हैं इसलिए उम्मीद के अनुरूप बीजद ने उनके समर्थन का भी ऐलान कर दिया है। बीजद के समर्थन से एनडीए के पास जो एक फीसदी मतों की कमी थी वह दूर होती नजर आ रही है। कई और छोटे दल भी आदिवासी महिला उम्मीदवार के समर्थन में आ सकते हैं। झामुमो पर भी यह दबाव होगा कि वह आदिवासी महिला उम्मीदवार का समर्थन करे या विरोध नहीं करे।
महाराष्ट्र की उथल-पुथल से संकट बढ़ा
इसके अलावा ऐन वक्त पर जब राष्ट्रपति चुनाव का माहौल गर्म हो रहा था तब महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार पर उत्पन्न खतरे ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार जो राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की कमान अपने हाथ में ले रहे थे, वह सरकार बचाने में लग गए हैं। ऐन वक्त पर गलत संदेश गया है कि विपक्ष अपनी सरकार नहीं बचा पा रहा है तो वह राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए को कैसे टक्कर देगा।