आप ऐसे कई लोगों को जानते होंगे जो दूसरी लहर में संक्रमित हुए और टीका लगवाने के बावजूद तीसरी लहर में भी कोरोना का शिकार बन गए। ये पुन: संक्रमण की स्थिति है जिसमें एक बार कोरोना को हरा चुका मरीज दोबारा या कभी-कभी तीसरी व चौथी बार इसकी चपेट में आ जाता है। पुन: संक्रमण में किसी खास वैरिएंट की भूमिका को लेकर वैज्ञानिकों की राय बंटी हुई है
इंग्लैंड में ऐसे कई मामले सामने आए जिसमें लोग दिसंबर में ओमीक्रो.न की वजह से आयी कोरोना की लहर में संक्रमित होने के बाद जनवरी में दोबारा इसकी चपेट में आ गए। कई-कई लोग तो तीन से चार बार संक्रमित हो चुके हैं और छोटे बच्चों में भी पुन: संक्रमण के मामले देखने को मिल रहे हैं। हालांकि यूके हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी ऐसे मामलों को संभावित पुन: संक्रमण के रूप में परिभाषित कर रही है, जिसमें संक्रमित होने के 90 दिनों बाद मरीज दोबारा संक्रमित हो जाए क्योंकि एजेंसी का कहना है कि कई मरीजों में लक्षण ठीक होने के बाद भी संक्रमण लंबे वक्त तक बना रहता है, जिसे पुन: संक्रमण समझ लिया जाता है।
हल्के संक्रमण वालों को जोखिम ज्यादा
वैज्ञानिकों का कहना है कि पुन: संक्रमण होने का सबसे बड़ा जोखिम कारक टीका न लगवाना हो सकता है। इसके अलावा, ऐसे लोगों के दोबारा संक्रमित रहने के आसार ज्यादा रहते हैं जिन्हें पहली बार कम प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के साथ हल्का संक्रमण था और वे उससे उबर गए थे। ऐसे मरीजों की इम्युनिटी उतनी ताकतवर नहीं होती कि वे दोबारा कोरोना वायरस को हरा दें।
अलग-अलग वैरिएंट की भी भूमिका
वैज्ञानिकों की राय कोरोना के अलग-अलग स्वरूपों की पुन: संक्रमण में भूमिका को लेकर बंटी हुई है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक दल का डाटा के आधार पर दावा है कि डेल्टा स्वरूप के मुकाबले ओमीक्रोन में पुन: संक्रमण का खतरा छह गुना तक ज्यादा है। जबकि कई वैज्ञानिकों का कहना है कि पुन: संक्रमण से कोरोना के किसी खास स्वरूप का कोई लेनादेना नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमीक्रोन से संक्रमित होने के बाद दोबारा इसी वैरिएंट वाले संक्रमण की चपेट में आने की संभावना काफी कम होती है। साथ ही वैज्ञानिकों का कहना है कि पुन: संक्रमण के लिए यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोई व्यक्ति संक्रमण की कितनी मात्रा के चपेट में आया।
पहले की तुलना में हल्का होता पुन: संक्रमण
ब्रिटिश सरकार के पुन: संक्रमण के आंकड़े बताते हैं कि पहली बार संक्रमण होने की तुलना में दोबारा संक्रमण होने पर अधिकांश मामलों में मरीज को कम परेशानी महसूस होती है क्योंकि उसमें वायरल लोड कम होता है। हालांकि पुन: संक्रमण कई कारकों पर निर्भर करता है और यह हर मरीज की शारीरिक क्षमता के हिसाब से कम या अधिक गंभीर भी हो सकता है।
इस तरह जोखिम घटाएं
एक बार संक्रमित हो चुका मरीज इस गलतफहमी में न रहे कि उसे दोबारा संक्रमण नहीं होगा। ऐसे लोगों को ज्यादा सतर्कता बरतते हुए मास्क और दूरी का पालन करना चाहिए। साथ ही, संक्रमित हो चुके लोगों को जरूर टीका लगवाना चाहिए और अगर वे बूस्टर डोज के लिए योग्य हैं, तो उससे भी परहेज नहीं करना चाहिए।