कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस सुमन श्याम ने कई मामलों में अभियुक्तों को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि सरकार के कदम से “लोगों के निजी जीवन में तबाही” मची है और कहा कि ये मामले “हिरासत में पूछताछ” के लिए मान्य नहीं हैं.
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि,
“ये हिरासत में पूछताछ के मामले नहीं हैं. आप (राज्य) कानून के अनुसार आगे बढ़ें, चार्जशीट दाखिल करें, अगर वे दोषी हैं, तो उन्हें दोषी ठहराया जाता है. यह लोगों के निजी जीवन में तबाही मचा रहा है, बच्चे हैं, वहां परिवार के सदस्य और बुजुर्ग हैं. न्यायमूर्ति सुमन श्याम, गौहाटी उच्च न्यायालय
पॉक्सो के आरोप:
इस बीच, सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने बताया कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POSCO) की गैर-जमानती धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन न्यायाधीश ने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया:
“POCSO आप कुछ भी जोड़ सकते हैं. यहां POCSO क्या है? केवल इसलिए कि POCSO जोड़ा गया है, क्या इसका मतलब यह है कि न्यायाधीश यह नहीं देखेंगे कि मामला क्या है? … हम यहां किसी को बरी नहीं कर रहे हैं. कोई भी आपको जांच करने से नहीं रोक रहा है.”
उन्होंने यह भी सवाल किया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत रेप के आरोपों को क्यों जोड़ा गया:
“धारा 376 (IPC) क्यों? क्या यहां रेप का कोई आरोप है? ये सभी अजीब आरोप हैं.”
असम में क्या हो रहा है?
बाल विवाह को “अक्षम्य और जघन्य अपराध” करार देते हुए, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने 3 फरवरी को बाल विवाह पर एक राज्यव्यापी ‘कार्रवाई’ शुरू की थी.
16 फरवरी तक लगभग 3041 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. इस तरह की गिरफ्तारियां से राज्य में महिलाओं के जीवन में असमान रूप से कहर बरपा रही हैं और इसके लिए कैसे ‘बिना सोचे-समझे’ कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
एडिटेड :- राहनुर आमीन लष्कर