लखीमपुर खीरी कांड के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की बेल को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि आशीष मिश्रा की बेल पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने पीड़ितों के पक्ष को सही से नहीं सुना और सुनवाई के अधिकार को खारिज कर दिया गया। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘पीड़ितों का अधिकार है कि हर सुनवाई में उनके पक्ष को भी सुना जाए। लेकिन हाई कोर्ट में उनके पक्ष को अनसुना कर दिया गया।’ इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने आशीष मिश्रा को एक सप्ताह के अंदर सरेंडर करने का आदेश दिया। इसका अर्थ हुआ कि अब ज्यादा से ज्यादा एक सप्ताह ही आशीष मिश्रा जेल से बाहर रह पाएगा।
चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की बेंच ने कहा कि हमारा मानना है कि इस मामले में पीड़ितों को सही से सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि हर सुनवाई में पीड़ित को यह आधिकार है कि उसके पक्ष को गंभीरता के साथ सुना जाए। अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने आशीष मिश्रा को बेल देते हुए अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर दिया था। अदालत ने कहा कि किसी भी घटना में सिर्फ एफआईआर को ही सब कुछ नहीं माना जा सकता, पूरी न्यायिक प्रक्रिया को ध्यान में रखने की जरूरत है। इस दौरान मृतक किसानों के परिजनों के वकील ने अदालत से कहा कि वह आदेश दे कि हाई कोर्ट का वही जज अब इस केस की सुनवाई न करे, जिसने आशीष मिश्रा को बेल दी थी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस तरह का आदेश पारित करना सही नहीं होगा। हमें भरोसा है कि वही जज इस मामले को दोबारा नहीं सुनना चाहेगा। अदालत ने साफ कहा कि जिस तरह से हाई कोर्ट की ओर से जल्दबाजी दिखाते हुए यह फैसला सुनाया गया और पीड़ितों को मौका नहीं दिया गया, वह उसके आदेश को खारिज करने के लिए पर्याप्त है। गौरतलब है कि आशीष मिश्रा को इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से 14 फरवरी को बेल दे दी गई थी, जब यूपी विधानसभा चुनाव के दूसरे राउंड का मतदान चल रहा था। अदालत के इस फैसले पर सवाल उठाए गए थे और घटना में मारे गए किसानों के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया था।