पहला-भारतीय न्याय संहिता, दूसरा-भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, तीसरा-भारतीय साक्ष्य अधिनिमय
नई दिल्ली। देश में रविवार रात घड़ी पर बड़ी और छोटी सूई का कांटा ठीक 12 पर पहुंचते ही एक जुलाई की तारीख ने भारत की दंड संहिता में नया इतिहास लिख दिया। आज से देश में आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनिमय लागू हो गए। तीन नए कानूनों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकी (एफआईआर) से लेकर फैसले तक को समय सीमा में बांधा गया है।
यही नहीं आपराधिक ट्रायल को गति देने के लिए नए कानून में 35 जगह टाइम लाइन जोड़ी गई है। शिकायत मिलने पर एफआईआर दर्ज करने, जांच पूरी करने, अदालत के संज्ञान लेने, दस्तावेज दाखिल करने और ट्रायल पूरा होने के बाद फैसला सुनाने तक की समय सीमा तय है। इसी के साथ आधुनिक तकनीक का भरपूर इस्तेमाल और इलेक्ट्रानिक साक्ष्यों को कानून का हिस्सा बनाने से मुकदमों के जल्दी निपटारे का रास्ता आसान किया गया है। शिकायत, समन और गवाही की प्रक्रिया में इलेक्ट्रानिक माध्यमों के इस्तेमाल से न्याय की रफ्तार तेज होगी।
अब तीन दिन में एफआईआर
नए कानून में तय समय सीमा में एफआईआर दर्ज करना और उसे अदालत तक पहुंचाना सुनिश्चित किया गया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में व्यवस्था है कि शिकायत मिलने पर तीन दिन के अंदर एफआईआर दर्ज करनी होगी। तीन से सात साल की सजा के केस में 14 दिन में प्रारंभिक जांच पूरी करके एफआईआर दर्ज की जाएगी। 24 घंटे में तलाशी रिपोर्ट के बाद उसे न्यायालय के सामने रख दिया जाएगा।
आरोप-पत्र की भी टाइम लाइन तय
दुष्कर्म केस में सात दिन के भीतर पीड़िता की चिकित्सा रिपोर्ट पुलिस स्टेशन और कोर्ट भेजी जाएगी। इससे पहले सीआरपीसी में इसकी कोई समय सीमा तय नहीं थी। नया कानून आने के बाद समय में पहली कटौती यहीं से होगी। नए कानून में आरोप-पत्र की भी टाइम लाइन तय है। आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए पहले की तरह 60 और 90 दिन का समय तो है लेकिन 90 दिन के बाद जांच जारी रखने के लिए कोर्ट से इजाजत लेनी होगी और जांच को 180 दिन से ज्यादा लंबित नहीं रखा जा सकता। 180 दिन में आरोप-पत्र दाखिल करना होगा। ऐसे में जांच चालू रहने के नाम पर आरोपपत्र को अनिश्चितकाल के लिए नहीं लटकाया जा सकता।
अदालत के लिए भी समय सीमा
अदालत के लिए भी समय सीमा तय की गई है। मजिस्ट्रेट 14 दिन के भीतर केस का संज्ञान लेंगे। केस ज्यादा से ज्यादा 120 दिनों में ट्रायल पर आ जाए इसके लिए कई उपाय किए गए हैं। प्ली बार्गेनिंग का भी समय तय है। प्ली बार्गेनिंग पर नया कानून कहता है कि अगर आरोप तय होने के 30 दिन के भीतर आरोपी गुनाह स्वीकार कर लेगा तो सजा कम होगी। ट्रायल पूरा होने के बाद अदालत को 30 दिन में फैसला सुनाना होगा अभी सीआरपीसी में प्ली बार्गेनिंग के लिए कोई समय सीमा तय नहीं थी। नए कानून में केस में दस्तावेजों की प्रक्रिया भी 30 दिन में पूरी करने की बात है। फैसला देने की भी समय सीमा तय है। ट्रायल पूरा होने के बाद अदालत को 30 दिन में फैसला सुनाना होगा।
दया याचिका के लिए भी समय सीमा तय
लिखित कारण दर्ज करने पर फैसले की अवधि 45 दिन तक हो सकती है लेकिन इससे ज्यादा नहीं। नए कानून में दया याचिका के लिए भी समय सीमा तय है। सुप्रीम कोर्ट से अपील खारिज होने के 30 दिन के भीतर दया याचिका दाखिल करनी होगी।
ऐसा है नया कानून
- पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया।
- राजद्रोह की जगह देशद्रोह बना अपराध।
- मॉब लिंचिंग सेल में आजीवन कारावास या मौत की सजा।
- पीडि़त कहीं भी दर्ज करा सकेंगे एफआईआर।
- राज्य को एकतरफा केस वापस लेने का अधिकार नहीं।
- एफआईआर, केस डायरी, चार्जशीट, जजमेंट होंगे डिजिटल।
- तलाशी और जब्ती में आडियो-वीडियो रिकार्डिंग अनिवार्य।
- गवाह के लिए ऑडियो-वीडियो से बयान रिकार्ड कराने का विकल्प।
- सात साल या उससे अधिक सजा के अपराध में फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाना अनिवार्य।
- छोटे अपराधों में जल्द निपटारे के लिए समरी ट्रायल (छोटी प्रक्रिया में निपटारा) का प्रावधान।
- पहली बार के अपराधी के ट्रायल के दौरान एक तिहाई सजा काटने पर मिलेगी जमानत।
- भगोड़े अपराधियों की संपत्ति होगी जब्त।
- इलेक्ट्रानिक डिजिटल रिकार्ड माने जाएंगे साक्ष्य।
- भगोड़े अपराधियों की अनुपस्थिति में भी चलेगा मुकदमा।
बड़ा बदलाव
- इंडियन पीनल कोड (आईपीसी)1860 की जगह ली भारतीय न्याय संहिता 2023 ने।
- क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (सीआरपीसी) 1973 की जगह ली भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 ने।
- इंडियन एवीडेंस एक्ट 1872 की जगह अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023।