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चुनावी बॉन्ड के विवाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार शर्मसार

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मुंबई : लोकसभा चुनाव के पहले जब केंद्र सरकार चुनावी बॉन्ड के विवाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने शर्मसार हो रही थी, तभी अचानक सीएए का बम फूटा। सरकार ने इस कानून का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। राजनीति के जानकार आसानी से कयास लगा सकते हैं कि सरकार नहीं चाहती थी कि देश चुनावी बॉन्ड पर चर्चा करे क्योंकि इससे उसकी छवि खराब हो रही है। इसलिए उसने इलेक्टोरल बॉन्ड की फजीहत से बचने के लिए सीएए का पासा फेंक दिया है।
गौरतलब है कि २०१९ के चुनाव के पहले भी भाजपा ने सीएए का शिगूफा छोड़ा था। इसके बाद दिसंबर २०१९ में सीएए कानून बना था। तब देशभर में इसका जबरदस्त विरोध हुआ था। इस कानून का विरोध होते देख सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इसके बाद सरकार ने चुप्पी साध ली थी। सरकार ने चुनावी बॉन्ड के तहत चंदा देनेवालों का नाम गुप्त रखने का जो एजेंडा लागू किया था, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी धज्जियां उड़ा दीं। ऐसे में भाजपा को लगा कि कुछ कॉर्पोरेट हाउसों के साथ उसके चुनावी चंदे की लेन-देन का मामला सार्वजनिक होने से मीडिया उसे बड़ा मुद्दा बना लेगा और मीडिया और देश के सामने उसकी खासी फजीहत होगी। ऐसे में सबसे आसान काम है कि मीडिया को कोई ऐसा मुद्दा दे दो ताकि वह उसमें व्यस्त हो जाए और लोगों का ध्यान चुनावी बॉन्ड की ओर से हट जाए। अब हो भी कुछ ऐसा ही रहा है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद एसबीआई ने २४ घंटे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ा डेटा चुनाव आयोग को दे दिया पर मीडिया में सीएए छाया हुआ है। राजनीतिक दलों के नेतागण भी सीएए पर बयान देने में उलझ गए हैं। देश में दिल्ली, यूपी और असम सरीखे राज्यों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है और उन जगहों की सुरक्षा काफी बढ़ा दी गई है। विपक्ष ने केंद्र की इस हरकत को आड़े हाथ लिया है और एक स्वर में सभी नेताओं ने इसकी निंदा करते हुए सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं।

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