पारंपरिक तौर पर ऐसा माना जाता है कि मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ़ रहता है लेकिन उपचुनाव में सपा को लोकसभा चुनाव की तरह मुस्लिम मतदाताओं का साथ नहीं मिला. वहीं, समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करने वाले अयोध्या के पूर्व विधायक पवन पांडे सपा के पक्ष में ब्राह्मणों को नहीं कर पाए. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का फ़ैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में जो जादू चला था वो मिल्कीपुर उपचुनाव में नहीं चल पाया. समाजवादी पार्टी ने पीडीए फॉर्मूले के सहारे 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी चुनौती दी थी.
अगर जातीय आँकड़ों की बात करें तो मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं में से 30 प्रतिशत दलित समुदाय से आते हैं, 15 प्रतिशत यादव समुदाय से और 15 फ़ीसदी मुस्लिम समुदाय से हैं. इसके अलावा 25 फ़ीसदी वोटर्स ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया समेत अगड़ी जाति से हैं. बाकी के 15 फ़ीसदी जैसे धोबी, कुम्हार, लोधी लोहार समेत अन्य अति पिछड़े वर्ग से आते हैं. बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यादवों को अपनी तरफ़ मोड़ना था. इस पर बीजेपी के समर्थक जगजीवन यादव ने कहा, “बीजेपी ने चुपचाप इस मिशन पर काम किया, पार्टी के कार्यकर्ताओं ने समुदाय के प्रधान, समुदाय के पूर्व प्रधानों से संपर्क किया और उन लोगों से भी संपर्क किया, जिन्होंने छोटे-छोटे चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी.” “यादवों को एकजुट करने में आरएसएस पदाधिकारियों ने अहम भूमिका निभाई और वो इसके लिए पिछले छह महीने से काम कर रहे थे.”
वहीं, समाजवादी पार्टी को अयोध्या के पूर्व विधायक पवन पांडे को प्रचार में लगाकर ये उम्मीद थी कि बड़ी संख्या में ब्रह्माण समुदाय का वोट वो सपा की तरफ़ करेंगे. पांडे अखिलेश यादव के क़रीबी सहयोगी माने जाते हैं लेकिन इस चुनाव में वो ब्रह्माण समुदाय का वोट सपा की तरफ मोड़ने में सफल नहीं रहे. मिल्कीपुर के एक स्थानीय पुजारी रामआधार तिवारी ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं है कि पांडे ब्राह्मण समुदाय से जुड़े हुए हैं. लेकिन वो इस समुदाय का वोट समाजवादी पार्टी की तरफ नहीं मोड़ पाए.” एक स्थानीय किसान रामभावन पांडे कहते हैं,”समाजवादी पार्टी ने ब्रह्माणों के बीच कोई ठोस काम नहीं किया. सपा नेताओं ने सिर्फ़ सार्वजनिक बैठकों में ही उन्हें संबोधित किया.” मिल्कीपुर में दलित वोटर्स की संख्या सबसे ज़्यादा है. इनमें से बड़ी संख्या में लोगों की पहली पसंद इस चुनाव में बीजेपी रही. इस निर्वाचन क्षेत्र में दो प्रमुख दलित समुदाय हैं, पासी और कोरी. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इन दोनों प्रमुख समूहों के बीच पार्टी की पैठ बनाने में अहम भूमिका निभाई. पासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राम बोध कहते हैं, “जब हमारे समुदाय ने देखा कि उन्हें (बीजेपी) यादव समुदाय का साथ मिल रहा है तो हमारे समुदाय के ज़्यादातर लोगों ने बीजेपी को वोट देना चुना.” वो कहते हैं, ” यादवों का बीजेपी की ओर रुख करने के फ़ैसले ने हमें समाजवादी पार्टी के साथ बने रहने को सवालों के घेरे में ला दिया.”
राजनीतिक विश्लेषक ये मानते हैं कि पारंपरिक तौर पर सपा को मुस्लिम समुदाय का वोट मिलता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. उनका वोट टर्न आउट कम रहा. अयोध्या में समाजवादी पार्टी के नेता मक़सूद अली ने कहा, “मुझे आश्चर्य हुआ कि इस समुदाय से लोग बड़ी संख्या में वोट करने के लिए क्यों नहीं आए. हम ज़रूर इसका पता लगाएंगे क्योंकि ये हमारे लिए चिंता की बात है.” हालांकि, मिल्कीपुर विधानसभा उप चुनाव पर क़रीबी नज़र रखने वाले विश्लेषकों सपा की हार के पीछे दूसरी वजह भी बताते हैं. राजनीतिक विश्लेषक इंदु भूषण पांडे कहते हैं कि उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी को हराना आसान नहीं होता है क्योंकि सारी सरकारी मशीनरी उसके साथ होती है. मतदान के दौरान के एक वीडियो का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “रामबहोर पांडे नाम का एक व्यक्ति कई बार ये कहते नज़र आए कि ‘उन्होंने खुद छह वोट डाले हैं और अधिकारियों का भी सहयोग’ मिला.” वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह कहते हैं, “मिल्कीपुर में मिला जनादेश बीजेपी को मिला जनादेश नहीं कहा जा सकता है. दुर्भाग्य से इसका पूरा सच कभी बाहर नहीं आएगा. इस चुनाव में पार्टी और सरकार के बीच का भेद ही मिट गया था. इसमें चुनाव आयोग का पूरा सहयोग रहा. सही मायने में यह भाजपा का बदला नहीं है बल्कि इसे एक रणनीति के तहत मिल्कीपुर उपचुनाव को बदले के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.”
दिल्ली विधानसभा चुनाव और मिल्कीपुर उप-चुनाव के नतीजों पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा है और उप-चुनाव में ईमानदारी न बरतने के आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा, “पीडीए की बढ़ती शक्ति का सामना भाजपा वोट के बल पर नहीं कर सकती है, इसीलिए वो चुनावी तंत्र का दुरुपयोग करके जीतने की कोशिश करती है.” “ऐसी चुनावी धांधली करने के लिए जिस स्तर पर अधिकारियों की हेराफेरी करनी होती है, वो 1 विधानसभा में तो भले किसी तरह संभव है, लेकिन 403 विधानसभाओं में ये ‘चार सौ बीसी’ नहीं चलेगी। इस बात को भाजपावाले भी जानते हैं, इसीलिए भाजपाइयों ने मिल्कीपुर का उपचुनाव टाला था.पीडीए मतलब 90% जनता ने ख़ुद अपनी आँखों से ये धांधली देखी है.” सरकार पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, “वहीं उत्तर प्रदेश की हमने-आपने लूट देखी है. उन लोगों को लोकतंत्र में सम्मान देना चाहिए, जिन्होंने वोट नहीं देने दिया, उन लोगों को विशेष सम्मान देना चाहिए जिन्होंने 6 वोट डाले और उन्हें भी सम्मान मिलना चाहिए जो लोग दूसरे ज़िले से आकर भारतीय जनता पार्टी के लिए वोट डाला.” उन्होंने आगे कहा, “जो लोग ये कह रहे हैं कि मिल्कीपुर जीतकर अयोध्या का बदला ले लिया, अयोध्या का बदला कोई नहीं हो सकता. ये चुनाव भी जीत जाते लेकिन इन्होंने बड़े पैमाने पर बेईमानी की है.” इन सभी आरोपों को दरकिनार करते हुए बीजेपी अयोध्या के मीडिया इंचार्ज रजनीश सिंह कहते हैं ” योगी आदित्यनाथ ने बंटोगे तो कटोगे का नारा दिया था. यह मिल्कीपुर उप चुनाव में काम कर गया. इसका परिणाम है कि हिंदू एक साथ आए और बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की और समाजवादी पार्टी को हार मिली.”