रुझानों की मानें तो पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) क्लीन स्वीप करने जा रही है। लेकिन ऐसे कौन से वो फैक्टर रहे जिसने 7 साल पुरानी पार्टी को पंजाब में सत्ता की कुर्सी तक पहुंचा दिया। सुबह 11.10 बजे चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार, आम आदमी पार्टी पंजाब विधानसभा की 117 में से 89 सीटों पर आगे चल रही है। कांग्रेस अब तक 15 सीटों पर आगे चल रही है। दो पारंपरिक दलों – कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) – की पंजाब में बुरी तरह हार के क्या कारण हैं? इन दोनों पार्टियों ने पिछले सात दशकों से राज्य पर शासन किया है।
भगवंत मान फैक्टर
2017 के विधानसभा चुनावों में जब AAP ने पंजाब में 112 सीटों में से 20 पर जीत हासिल की (23.7 फीसदी वोट शेयर के साथ), तो पार्टी को मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा नहीं करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। कहा गया था कि इस कदम के पीछे का कारण अरविंद केजरीवाल की पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षाएं थीं। चन्नी ने इसी तरह का आरोप लगाया था। हालांकि, 2022 में, AAP बेहतर तरीके से तैयार थी क्योंकि संगरूर के सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था। पार्टी का एक लोकप्रिय सिख चेहरा मान मालवा क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय हैं।
कांग्रेस का स्व-निर्मित संकट
सितंबर 2021 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के शीर्ष पद से हटने से राज्य में कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ीं। नेतृत्व संकट से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी और सुनील जाखड़ के बीच शीर्ष पद के लिए खूब विवाद हुआ, और ऐसा लगा कि आलाकमान इससे अनजान रहा। कांग्रेस में अंदरूनी कलह ने मतदाताओं को जमीन पर उलझा दिया है। रुझानों की मानें तो चन्नी के आने से भी कांग्रेस को दलित वोट को मजबूत करने में मदद नहीं मिली।
दिल्ली मॉडल
आप सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पंजाब के लोगों के सामने अपना दिल्ली मॉडल रखा। उन्होंने दिल्ली शासन मॉडल के चार स्तंभों – सस्ती दरों पर गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी को लेकर लोगों से वादे किए। पंजाब एक ऐसा राज्य है जो बिजली की महंगी दरों से जूझता रहा है, और जहां स्वास्थ्य और शिक्षा का ज्यादातर निजीकरण किया गया था। इसीलिए लोगों ने केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को हाथों हाथ लिया।
सत्ता विरोधी लहर का फायदा
ऐसा लगता है कि आप को कांग्रेस के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर से भारी लाभ हुआ है। पार्टी ने सफलतापूर्वक चुनावी एजेंडा को बढ़ती बेरोजगारी, COVID-19 महामारी के दौरान जीर्ण-शीर्ण स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे, महंगाई, शिक्षा और अन्य नागरिक मुद्दों को लोगों के सामने उठाया। केजरीवाल के प्रसिद्ध ‘दिल्ली मॉडल ऑफ गवर्नेंस’ ने मौजूदा कांग्रेस पार्टी को कड़ी टक्कर दी। आप को उन युवा और महिला मतदाताओं का समर्थन मिला जो एक नई पार्टी और ‘आम आदमी’ को मौका देना चाहते थे। इसी तरह, राज्य में महिलाओं के खातों में प्रति माह 1,000 रुपये की राशि जमा करने के AAP के वादे ने उन्हें इस वर्ग के लिए पसंदीदा बना दिया।