महाराष्ट्र में चल रहे सियासी मुकाबले में सोमवार को हुए फ्लोर टेस्ट को अंतिम पड़ाव कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सरकार ने 164 विधायकों के समर्थन से विश्वास मत हासिल कर लिया है। वहीं, करीब दो सप्ताह पहले सत्ता पर काबिज महाविकास अघाड़ी गठबंधन 99 पर सिमट गया। आंकड़ों और पद के लिहाज से देखें तो शिवसेना और खासतौर से ठाकरे परिवार की राजनीति खासी प्रभावित हुई है। एक ओर जहां पार्टी ने पहले विधायक गंवाएं। वहीं, बाद में संघर्ष का अंत भी सीएम की गद्दी गंवाकर हुआ। एक बार विस्तार से समझते हैं कि आखिर शुरुआत किस तरह हुई…
बात 20 या 21 जून की है। तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के सभी विधायकों की बैठक बुलाई थी। उन्हें विधान परिषद के चुनाव में क्रॉस वोटिंग को लेकर शक हुआ था। इस बैठक में पार्टी के सभी विधायकों को मौजूद रहने के निर्देश दिए गए थे। हालांकि, मंत्री एकनाथ शिंदे और 11 विधायकों का कोई पता नहीं चल रहा था। खबरें आई कि महाराष्ट्र के एक दर्जन विधायक सूरत पहुंचे हैं।
22 जून को खबर आई कि गुजरात के सूरत में ठहरे विधायक ने उत्तर पूर्वी राज्य असम के गुवाहाटी का रुख किया है। वहां पहुंचने पर शिंदे ने 40 विधायकों के समर्थन का दावा किया। खास बात है कि यह आंकड़ा उन्हें दल बदल कानून से बचने के लिए काफी था।
तीसरे दिन दीपक केसरकर, मंगेश कुडलकर और सादा सर्वांकर भी गुवाहाटी पहुंच गए। तब सभी बागी विधायकों ने पहली बार वीडियो जारी कर शक्ति प्रदर्शन किया। इधर, मुंबई में शिवसेना विधायकों के ‘अपहरण’ के दावे कर रही थी। खास बात है कि 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास गया, जिसमें कहा गया कि शिंदे ही विधायक दल के नेता हैं।
इसके बाद शिवसेना ने 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की मांग की। इस संबंध में डिप्टी स्पीकर को पत्र सौंपा गया। जवाब में दो निर्दलीय विधायकों ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया। खास बात है कि इस प्रस्ताव पर 34 विधायकों ने साइन किए थे। हालांकि, जिरवाल ने इसे खारिज कर दिया था।