मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की नई सरकार के गठन को एक महीना बीत चुका है, लेकिन अभी तक कैबिनेट का विस्तार नहीं हुआ है। कैबिनेट विस्तार को लेकर विपक्ष शिंदे-फडणवीस सरकार पर निशाना साध रहा है। दिल्ली में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अमित शाह की मुलाकात हो चुकी है और कैबिनेट विस्तार पर मुहर लग गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी। कहा जाता है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद से पांच-छह बार दिल्ली का दौरा कर चुके हैं।
इस पूरे प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को काफी अहम माना जा रहा है और कोर्ट के फैसले पर सिर्फ राजनीतिक गलियारा ही ध्यान दे रहा है। हालांकि, इसमें राज्य भर के नगर निगमों और स्थानीय निकायों के चुनाव शुरू हो गए हैं। कहा जा रहा है कि कैबिनेट विस्तार के बाद शिंदे समूह के साथ बीजेपी का अगला निशाना मुंबई नगर निगम चुनाव को लेकर है।
एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना को पार्टी बचाने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, मुंबई नगर निगम चुनाव के बीच उद्धव ठाकरे के लिए पार्टी निर्माण और शिंदे समूह और भजपा गठबंधन की दोहरी चुनौती है। चर्चा है कि मुंबई नगर निगम का चुनाव शिंदे समूह, भाजपा और शिवसेना के लिए आसान नहीं होगा।
मुंबई नगर निकाय चुनाव के लिए वार्ड आरक्षण की घोषणा के बाद अब सभी दलों के उम्मीदवारों ने मार्च निकालना शुरू कर दिया है। टिकट बंटवारे को लेकर शिवसेना के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द होने की संभावना है। शिवसेना द्वारा टिकट न मिलने से असंतुष्ट नेता एकनाथ शिंदे और भाजपा के पास जाकर टिकट पाने की कोशिश करेगा। शिवसेना के आधिकारिक उम्मीदवार के लिए यह मुश्किल भरा होने की संभावना अधिक है।
मुंबई में शिंदे की कोई राजनीतिक ताकत तो नहीं है। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों की राय है कि चूंकि शिंदे का विद्रोह सेना में अब तक हुए विद्रोहों की तुलना में सबसे प्रभावशाली है, इसलिए उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस साल होने वाले नगर निकाय चुनाव में शिवसेना को बीजेपी और शिंदे गुट के दोहरे संकट का सामना करना पड़ेगा। भाजपा ने पहले ही अपनी कमर कस ली है, 2017 के चुनावों में नगरपालिका की सत्ता पर कब्जा करने के लिए उसे सिर्फ दो सीटों का नुकसान हुआ था।