महाराष्ट्र में बागी विधायकों ने अब तक अपने को अलग गुट घोषित नहीं किया है। वे अब भी शिवसेना का हिस्सा बने हुए हैं। अलग गुट बनाने के लिए उन्हें विधायक दल के दो तिहाई सदस्यों (10वीं अनुसूची) को तोड़ना पड़ेगा। जब तक वे विधानसभा में आकर अलग गुट बनाने की घोषणा नहीं करते, सरकार पर कोई खतरा नहीं है और सरकार सुरक्षित है। हां यह जरूर है कि मुख्यमंत्री विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। इस समय वह एमवीए सरकार के मुखिया हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों से साफ है कि मौजूदा समय में सरकार अल्पमत में नहीं माना जा सकती क्योंकि बागी विधायकों ने खुद को अलग गुट घोषित नहीं किया है। वहीं, विपक्ष बिना विद्रोही गुट के अपने बूते पर सरकार नहीं बना सकता। ऐसे में राज्यपाल सरकार बनाने लिए संभावना भी कैसे तलाशेंगे। ऐसे में उनके पास मुख्यमंत्री की विधानसभा को भंग करने की सिफारिश मानने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।
सर्वोच्च अदालत के दो फैसले इस बारे में कानून स्पष्ट करते हैं जो एसआर बोमई (1994) और रामेश्वर प्रसाद (2008) में दिए गए थे। लेकिन इन दोनों फैसलों में सदन में शक्ति परीक्षण कराने की बात है। मगर यह स्थिति तब आएगी कि जब सरकार अल्पमत में आ जाए और विधानसभा भंग करने की सिफारिश करे। लेकिन वहां अभी ऐसा नहीं है और न ही विपक्ष ने अब तक सदन में अविश्वास प्रस्ताव दिया है।
विश्वास प्रस्ताव लाने पर स्थिति स्पष्ट होगी
अगर बगावत को देखते हुए विपक्ष विश्वास मत का प्रस्ताव लाता है तो सरकार की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। लेकिन इसमें खतरा है। विपक्ष विश्वास मत लाने का खतरा तब तक नहीं उठाएगा जब तक यह स्पष्ट न हो कि बागी विधायक वास्तव में विद्रोही ही बने रहेंगे और अलग गुट बनाकर विपक्ष के साथ मिल जाएगा। लेकिन यह स्थिति अभी नहीं है। परिस्थिति अब तक नहीं पहुंची है और स्थिति तरल बनी हुई है।