सांसदों और विधायकों के बड़ी संख्या में मुंह फेरने से परेशान उद्धव ठाकरे समर्थन जुटाने के नए रास्ते तलाश रहे हैं। खबर है कि मराठी मतदाताओं को बंटने के बाद उन्होंने उत्तर भारतीयों का रुख किया है। इसे लेकर ठाकरे ने मंगलवार को मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों के साथ बैठक भी की है। खास बात है कि फूट के बाद शिवसेना के लिए बृह्नमुंबई की राह आसान नजर नहीं आ रही है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मातोश्री में एक अधिकारी ने कहा, ‘जब विधानसभा और संसद में हमारे चुने हुए सदस्यों ने भले ही ठाकरे को छोड़ दिया हो, अब हम संगठन को दोबारा बनाने के लिए जनता के समर्थन पर निर्भर हैं।’ पार्टी में हुई बगावत के बाद बीएमसी पर शिवसेना का तीन दशक का नियंत्रण भी संकट में नजर आ रहा है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, इसी के चलते पार्टी ने अपने मुख्य जनाधार से आगे निकलर उत्तर भारतीयों का रुख किया है, जिन्होंने शिवसेना के अप्रवासी विरोधी बयानों के चलते पहले कांग्रेस या भाजपा का समर्थन किया है।
आंकड़ों में समझें उत्तर भारतीयों का गणित
बीएमसी चुनाव में मतदाताओं में उत्तर भारतीयों की 18 से 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं। निकाय के 227 में से 50 वार्डों में उत्तर भारतीय बहुसंख्यक हैं और करीब 40-45 वार्डों में इनकी खास पहुंच है। कांग्रेस के गिरते सियासी ग्राफ के बाद उत्तर भारतीयों ने भाजपा का रुख किया था। साल 2017 में हुए बीएमसी चुनाव में पार्टी दूसरे नंबर पर थी।