आर्यन खान केस में बनाए गए पंचों को लेकर महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक पिछले करीब एक पखवाड़े से नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) पर हमले कर रहे हैं। नवाब मलिक ने पहले आरोप लगाया कि मनीष भानुशाली नामक पंच बीजेपी से जुड़ा है, जबकि के पी गोसावी नामक दूसरे पंच के खिलाफ धोखाधड़ी के कई केस दर्ज हैं। दो दिन पहले नवाब मलिक ने एनसीबी के एक और पंच फ्लेचर पटेल के नाम का जिक्र किया। उससे जुड़े फोटो भी ट्वीट किए और आरोप लगाया कि फ्लेचर पटेल एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे के पारिवारिक मित्र हैं और वह तीन केसों में एनसीबी के पंच बन चुके हैं।
नवाब मलिक ने जिन पंचों के भी नाम लिए, वह सब प्राइवेट व्यक्ति हैं। ज्यादातर जांच एजेंसियां प्राइवेट व्यक्तियों को ही पंच बनाती हैं, पर महाराष्ट्र पुलिस का ऐंटि करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी सिर्फ ऐसी एजेंसी हैं, जहां रिश्वत के खिलाफ लगाई गई ट्रैप के दौरान सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को ही पंच बनाया जाता है। एसीबी में लंबे समय तक काम कर चुके एक पुलिस अधिकारी ने एनबीटी को यह जानकारी दी।
इस अधिकारी के अनुसार, एसीबी प्राय: सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार करती है। पहले यहां भी प्राइवेट व्यक्तियों का ही पंच बनाया जाता था, लेकिन जब पंच कोर्ट में होस्टाइल यानी मुकरने लगे, तो महाराष्ट्र सरकार ने एक जीआर यानी सरकारी आदेश निकला, जिसमें कहा गया, कि एसीबी जब भी रिश्वतखोर सरकारी कर्मचारी के खिलाफ ट्रैप लगाएगी, तो सरकारी कर्मचारी को ही पंच बनाएगी। यह सरकारी कर्मचारी पुलिस वाला नहीं होगा। सरकारी विभाग में भी एग्जीक्यूटिव नहीं, नॉन एग्जीक्यूटिव पोस्ट पर होगा। इस अधिकारी के अनुसार, अकेले मंत्रालय में ही 29 सरकारी विभाग हैं। इसके अलावा बीएमसी, आरटीओ, रेवन्यू, PWD कहीं से भी किसी सरकारी कर्मचारी को पंच बनने के लिए चलने को कहा जा सकता है।
सरकारी कर्मचारी के पंच बनने के फायदे
सरकारी कर्मचारी के पंच बनने का फायदा यह होता है कि वह यदि कोर्ट में मुकदमे के दौरान होस्टाइल होगा, तो उसके खिलाफ विभागीय जांच बैठाई जा सकती है। इसलिए वह कभी होस्टाइल नहीं होगा। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, ऐंटि करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी के केसों में पंच का रोल बहुत बड़ा होता है। एसीबी जब ट्रैप लगाती है, तो उसके साथ एक तो शिकायतकर्ता होता है, जिससे रिश्वत मांगी गई थी।
दूसरे, एसीबी के पास दो पंच होते हैं, जिनके सामने रिश्वत ली गई या जिन्होंने आरोपी को दूर से ही सही, रिश्वत लेते देखा। मर्डर, रॉबरी, ड्रग्स जैसे केसों में अलग-अलग जांच एजेंसियां डिजिटल व अन्य ऐविडेंस भी जुटाती हैं, जैसे आर्यन के खिलाफ उसके वॉट्सऐप चैट्स मुसीबत बन गए, लेकिन एसीबी के पास प्राय: सबसे महत्वपूर्ण हथियार पंच ही होते हैं।
यदि मुकदमे के दौरान वह मुकर गए, तो एसीबी का पूरा केस बेकार हो जाता है। लेकिन ऐंटि करप्शन ब्यूरो भी किसी एक सरकारी कर्मचारी या किसी एक ही सरकारी विभाग के कर्मचारियों को बार-बार अपने केस में पंच नहीं बना सकता। एक अधिकारी के अनुसार, एक केस में एसीबी मुकदमे में इसी वजह से कोर्ट में हार गया, क्योंकि आरोपी के वकील ने एक ही सरकारी विभाग से छह बार पंच बनाए जाने के ऐविडेंस कोर्ट को सौंप दिए।
समु्द्र, पहाड़, जंगल में नहीं मिलते पंच
एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, यदि किसी पंच को बार-बार रिपीट किया जाता है, जो जांच अधिकारी को कोर्ट को इसके लिए कनविन्स करना पड़ेगा, कि उसने ऐसा क्यों किया। जैसे समुद्र में, पहाड़ पर, जंगल में किसी भी जांच एजेंसी को इंडिपेंडेंट पंच कहां से मिलेंगे। इसलिए ऐसी जगहों के लिए कोई भी जांच एजेंसी अपने पुराने पंचों को ले जा सकती है। इस अधिकारी के अनुसार, दिक्कत यह होती है कि किसी भी पंच को मुकदमे के दौरान कोर्ट में जाना जरूरी होता है।
गवली-दाऊद की पुरानी दुश्मनी
जांच एजेंसियों से यह भी उम्मीद की जाती है कि जिसे वह पंच बनाए, उसका कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं होना चाहिए। जैसे आर्यन केस में बनाए गए एक पंच के खिलाफ धोखाधड़ी के चार मामले दर्ज हैं। लेकिन करीब तीन दशक पहले जब डॉन अरुण गवली को टाडा ऐक्ट में गिरफ्तार किया गया था और उसके पास से स्टेनगन जब्त की गई थी, तब मुंबई क्राइम ब्रांच ने अरुण गवली के प्रतिद्वंद्वी डॉन दाऊद इब्राहिम के पंटर फहीम मचमच को उस केस में पंच बनाया था। अरुण गवली उस केस में टाडा कोर्ट से कनविक्ट भी हुआ था। अरुण गवली को गिरफ्तार करने वाले पूर्व एसीपी सुरेश वालीशेट्टी ने एनबीटी को बताया कि उस दौर में गैंगस्टर के खिलाफ कोई पंच बनने को तैयार ही नहीं होता था। यदि तैयार भी हो गया, तो मुकदमे के दौरान मुकर जाता था, इसलिए हमारे पास यही विकल्प था कि ऐसा पंच बनाओ, जो गवाही के दौरान कोर्ट में मुकरे नहीं। फहीम मचमच उस केस में मुकदमे के बाद पाकिस्तान भाग गया। करीब चार महीने पहले उसकी कोरोना से वहां मौत हो गई।