भाजपा के नॉमिनेटेड नगरसेवक भालचंद्र शिरसाट को स्टैंडिंग कमिटी से हटाने के लिए चली कानूनी लड़ाई में बीएमसी ने 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। यह कानूनी लड़ाई हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चली, जहां आखिर में भाजपा नगरसेवक के पक्ष में फैसला आया।
बता दें कि बीएमसी ने भालचंद्र शिरसाट की स्थायी समिति सदस्यता रद्द करने के लिए हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी, जहां बीएमसी की हार हुई और और कोर्ट ने उनकी सदस्यता बरकरार रखी। लेकिन इस राजनीतिक लड़ाई में बीएमसी का 1 करोड़ 4 लाख रुपये खर्च हो गए। यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को बीएमसी ने आरटीआई जानकारी में दी है।
गलगली ने बीएमसी के लॉ डिपार्टमेंट से शिरसाट की स्थायी समिति की सदस्यता के खिलाफ कोर्ट की लड़ाई में हुए खर्च का ब्योरा मांगा था। बीएमसी ने जो जानकारी मुहैया कराई, उसके मुताबिके सुप्रीम कोर्ट में बीएमसी की तरफ से केस देखने वाले एड मुकुल रोहितगी को 17.50 लाख रुपये दिए गए। कॉन्फ्रेंस के लिए 6.50 लाख रुपये और 2 सुनवाई के लिए 11 लाख रुपये दिए गए। एड ध्रुव मेहता को 5.50 लाख रुपये, सुकुमारन को ड्राफ्ट, कॉन्फ्रेंस, याचिका के लिए 1 लाख रुपये और अन्य कॉन्फ्रेंस और सुनवाई के लिए 2.26 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। वहीं ड्राफ्ट और अन्य के लिए अतिरिक्त 1.10 लाख रुपये प्रदान दिए गए हैं।
इस मामले में बीएमसी का हाई कोर्ट में पक्ष रखने के लिए काउंसिल जोएल कार्लोस को 9 सुनवाई के लिए 3.80 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। काउंसिल एसपी चिनाई को ड्राफ्टिंग के लिए 7.50 लाख रुपये और काउंसिल ए.वाई. साखरे को 40,000 रुपये दिए गए। साखरे को 6 सुनवाई के लिए 14.50 लाख रुपये दिए गए। काउंसिल एस.पी. चिनाई ने बीएमसी की ओर से हाई कोर्ट में 7 बार जिरह किया। उन्हें प्रत्येक सुनवाई के लिए 7.50 लाख रुपये की दर से 52.50 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। काउंसिल आरएम कदम को एक सुनवाई के लिए 5 लाख रुपये दिए गए हैं।
भाजपा के भालचंद्र शिरसाट ने कहा कि जो जानकारी सामने आ रही है, वह मुंबई की जनता देख रही है। कोरोना काल में जनता का पैसा लोगों की भलाई के लिए खर्च किया जाना चाहिए था। लेकिन शिवसेना ने अपनी जिद के लिए करोड़ों रुपये बर्बाद कर दिए। इसके बाद भी मुझे स्थायी समिति से हटाने का उनका प्रयास विफल रहा।