देशभर के थर्मल पावर प्लांट में कोयले की कमी और इससे गहरा रहे बिजली संकट को लेकर शिवसेना ने केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में लिखे गए संपादकीय में कोयले की कमी को लेकर कहा गया हैकेंद्र सरकार किसी भी हदतक जासकती है
सामना का संपादकीय कहता है कि केंद्र सरकार ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ जैसी है, जो कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को फायदा देने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती है। आज कोयले की कमी के चलते महाराष्ट्र एक बड़ा लोड शेडिंग का संकट देख रहा है। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार के कोयला क्षेत्र के बचकाने और भ्रष्ट संचालन के कारण महाराष्ट्र सहित पांच राज्य अंधेरे में डूब जाएंगे।
कि कुछ कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के अलावा ये सरकार और कुछ और नहीं कर रही है। सामना में केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से की गई है।
अचानक कोयले की कमी क्यों?
संपादकीय में अचानक कोयले की कमी को लेकर भी सवाल किया गया है। इसमें कहा गया है, कहीं केंद्र सरकार ने कुछ उद्योगपतियों के लाभ के लिए जानबूझकर तो कोयले की कमी नहीं की है। ये सवाल पूछे जा रहे हैं, क्योंकि लोगों का केंद्र सरकार से विश्वास उठ गया है।
केंद्र कह रहा कोयले की कमी नहीं
देश के विभिन्न बिजली संयंत्रों के कोयले की कमी से जूझने को लेकर कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि कोयले की कमी नहीं है। केंद्रीय वित्तमंत्री सीतारमण भी कोयली की किल्लत को बेबुनियाद बता चुकी हैं। वहीं बिजली संयंत्रों को कोयले की सप्लाई बाधित ना हो, इसके लिए कोल इंडिया ने एक बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत वह फिलहाल सिर्फ इन्हीं कंपनियों को कोयला आपूर्ति करने पर फोकस करेगी और बाकी उपभोक्ताओं की सप्लाई अस्थाई तौर पर बंद कर दिया गया है।
ये मामला कोयले के स्टॉक से जुड़ा है। देश के 135 बिजली स्टेशनों में से 115 कोयले की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। कई राज्य सरकारें लगातार कह रही हैं कि उनके सामने बिजली का संकट है। बता दें भारत में बिजली उत्पादन में करीब 70 फीसदी कोयला आधारित थर्मल पॉवर प्लांट के ही भरोसे है। ऐसे में कोयला की कमी को लेकर सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं इस क्षेत्र के विशेषज्ञ भी चिंता जता चुके हैं। कई लोगों ने इसको लेकर कहा है कि ये संकट ना सुलझा तो बिजली से चलने वाली इंडस्ट्री को मुश्किल हो सकती है।