मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने महिलाओं को दहेज संबंधी उत्पीड़न और क्रूरता से बचाने वाली धारा 498ए के दुरुपयोग पर नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा है कि अक्सर ऐसे मामलों में पति के बुजुर्ग माता-पिता, भाई-बहन और दूर के रिश्तेदारों को फंसाया जाता है, जिनका सीधे-सीधे ऐसे मामलों से कोई संबंध नहीं होता है। कोर्ट ने कहा है कि मौजूदा केस एक ऐसा आदर्श उदाहरण है, जिसमें कानून को लागू करनेवाली एजेंसी पुलिस का दुरुपयोग किया गया है और साथ ही न्यायिक प्रणाली का भी मजाक उड़ाया गया है। कोर्ट ने यह टिप्पणी चार लोगों के खिलाफ धारा 498ए के दर्ज मामले और चार्जशीट को रद्द करते हुए की है।
महिला ने 15 मई 2006 को पहले पति और उसे सगे संबंधियों पर बदसलूकी का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराई थी। जांच के बाद मैजिस्ट्रेट कोर्ट में चार्जशीट दायर हुई थी। इस बीच महिला ने पति के साथ समझौता कर लिया और दोबारा साथ रहने लगी।
महिला ने कोर्ट में दावा किया कि उसने गलतफहमी में शिकायत की थी। इस दावे पर मैजिस्ट्रेट ने 2007 में पति और उसके संबंधियों को बरी कर दिया, लेकिन पांच साल बाद महिला ने 2012 में पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ फिर पुराने आरोपों के आधार पर एफआईआर दर्ज कराई। महिला की शिकायत के मुताबिक, महिला को हुए थायरायड का ठीक से इलाज नहीं कराया गया। उसे घर खर्च के लिए पैसे नहीं दिए जाते थे। उसका धर्मांतरण कराया गया और घर में खाना नहीं दिया गया
।