नई दिल्ली – 1917 की बात है, जब जम्मू-कश्मीर के महाराजा डोगरा ने अपनी रियासत को दुश्मनों की बुरी नजर से बचाने के लिए एक अध्यादेश लागू किया, जिसे जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश कहा गया। दरअसल, उस वक्त रियासत में राजाओं की ओर से जो नियम-कानून जारी होते, उन्हें अध्यादेश या राज्यादेश कहा जाता था। यह कानून तभी से चला आ रहा है। यह कानून इतना सख्त माना जाता है कि इसमें आतंकियों की मदद करने वाले को भी आतंकी ही माना जाता है और उनके लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक आरआर स्वैन ने भी इसके लागू किए जाने की वकालत की है। यह कानून कितना सख्त है, इसके लागू होने से क्या होगा और इसके प्रावधानों के बारे में जानेंगे।
इसके अनुसार, जो भी दुश्मन का एजेंट होगा या जो भी दुश्मन का सहयोगी होगा, किसी दूसरे के साथ साजिश रचेगा या दुश्मन को मदद देगा या भारतीय सुरक्षा बलों के सैन्य या हवाई ऑपरेशन में बाधा पहुंचाएगा या भड़काएगा, उसे मृत्युदंड या कठोर उम्रकैद या 10 साल तक के सश्रम कारावास होगी। साथ में जुर्माना भी देना होगा। भारत के बंटवारे के बाद यह अध्यादेश राज्य के कानून के साथ विलय कर दिया गया। इसमें संशोधन भी किया गया। पाकिस्तान से आए हुए आतंकी और उसके समर्थक भी इस कानून से पनाह मांगते हैं। इस कानून को अनलॉफुल एक्टिविटीज(प्रीवेंशन) एक्ट (UAPA) से भी ज्यादा सख्त माना जाता है। इस कानून के तहत मौत की सजा या उम्रकैद दी जाती है।