नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी आरोपी को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार करने और ऐसे व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक जेल में रखने के लिए पूरक आरोप पत्र (सप्लीमेंट्र चार्जशीट) दाखिल करने पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को फटकार लगाते हुए सवाल पूछा है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने केंद्रीय एजेंसी से कहा कि आरोपियों को बिना मुकदमे के जेल में रखना बिल्कुल गलत है।
न्यायमूर्ति खन्ना ने ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू से कहा, ‘डिफॉल्ट जमानत का मकसद यह होता है कि आप जांच पूरी होने तक (किसी आरोपी को) गिरफ्तार नहीं कर सकते। आप यह नहीं कह सकते (किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकते हैं) कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, मुकदमा शुरू नहीं होगा। आप पूरक आरोप पत्र दाखिल नहीं कर सकते और फिर वह व्यक्ति बिना किसी मुकदमे के जेल में रहेगा ऐसा भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा, ‘इस मामले में, व्यक्ति १८ महीने से सलाखों के पीछे है। यह हमें परेशान कर रहा है। जब आप किसी आरोपी को गिरफ्तार करते हैं तो मुकदमा शुरू होना चाहिए।’ ऐसा भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा। कोर्ट ने पिछले साल अप्रैल में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी। उस वक्त न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा था, ‘जांच पूरी किए बिना, किसी गिरफ्तार आरोपी को डिफॉल्ट जमानत के अधिकार से वंचित करने के लिए एक जांच एजेंसी द्वारा आरोप पत्र दायर नहीं किया जा सकता है।’ सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी कई हाई-प्रोफाइल हस्तियों के मामलों को प्रभावित कर सकती है, जिनमें विपक्षी राजनीतिक नेता भी शामिल हैं, जिन्हें जांच एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया है और जेल में हैं। अदालत ने यह टिप्पणी झारखंड के अवैध खनन मामले से जुड़े एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की। आरोपी प्रेम प्रकाश, पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी हैं, जिन्हें पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में ईडी ने गिरफ्तार किया था।