पिता के जीवित रहते मकान में कोई अधिकार नहीं मिलेगा, बॉम्बे हाई कोर्ट

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मुंबई – बॉम्बे हाई कोर्ट ने 75 वर्षीय पिता को परेशान करने वाले बेटे को घर खाली करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ़ किया है कि घर का मालिकाना हक़ पिता के पास है, ऐसे में बेटे को पिता के जीवित रहते मकान में कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बेटा बीएमसी में नौकरी पर है, वह खुद के रहने का इंतजाम कर सकता है। पिता के पास मौजूदा मकान के अलावा दूसरा कोई आशियाना नहीं है। बेटे-बहू से तंग होकर बुज़ुर्ग ने पहले सीनियर सिटिजन ट्राइब्यूनल में अर्ज़ी की थी, मगर ट्राइब्यूनल ने इसे आंतरिक घरेलू मामला बताकर उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया था। ट्राइब्यूनल के आदेशों के ख़िलाफ़ बुज़ुर्ग ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

जस्टिस गौरी गोडसे ने तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि ट्राइब्यूनल बुज़ुर्ग के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है। ट्राइब्यूनल का काम संपत्ति का मालिकाना हक तय करना नहीं है। इसके लिए कानून में अलग विकल्प हैं, इसलिए ट्राइब्यूनल को अन्य पहलुओं पर विचार नहीं करना चाहिए था। हाई कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में इस पर कोई विवाद नहीं है कि मकान का मालिकाना हक़ बुज़ुर्ग के पास है। बुज़ुर्ग का दावा था कि बेटे ने अनुचित आरोप लगाकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया है। वहीं, बेटे का दावा था कि माता-पिता के बीच विवाद के चलते उसे घर से निकाला जा रहा है। पिता ने सीनियर सिटिजन कानून के प्रावधानों का दुरुपयोग किया है। मगर इससे असहमत जस्टिस गोडसे ने बुज़ुर्ग के पक्ष में फैसला सुनाया और ट्राइब्यूनल के दोनों आदेश को रद्द कर दिया।

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